उत्तराखंड
उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता हैं। यह प्रदेश पहाड़ों के लिए तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही साथ अपने सुंदर जंगलों के लिए भी जाना जाता हैं। यहाँ के जंगल हाथियों सहित कई वन्यजीवों का घर हैं। अपने सुंदर परिदृश्य के बावजूद भी प्रदेश पिछले 25 सालों से एक गंभीर समस्या का सामना कर रहा है।
हाल ही में वन्यजीव सप्ताह के दौरान जारी किए गए एक आंकडे से चौंकाने वाले डाटा सामने आया है। साल 2001 से लेकर साल 2025 तक, राज्य में कुल 538 हाथियों की मौत का मामला दर्ज किया गया है, जिनमें से 167 मौतें अप्राकृतिक कारणों से हुईं हैं जो एक चिंता का विषय हैं। यह आँकड़ा वन्यजीव संरक्षण प्रयासों और वन विभाग की कार्यशैली पर कई सवाल खड़ा करता है।
क्या है उनकी अप्राकृतिक मौत के मुख्य कारण-:
●मानव-वन्यजीव संघर्ष: उत्तराखंड मे शहरीकरण, कृषि विस्तार और वन भूमि अतिक्रमण की वजह से वन्यजीवों के निवास स्थान कम हो रहे हैं। इन मानवीय विकासों के कारण हाथियों के प्राकृतिक रास्ते बाधित हो रहे हैं। भोजन और पानी की तलाश में हाथी अक्सर मानव बस्तियों और खेतों की ओर चले आते हैं, जिससे संघर्ष की स्थिति पैदा होती है। इस संघर्ष में कई बार हाथियों की जान चली जाती है। वन विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि मानव-हाथी संघर्ष के कारण हाथियों की मौत की संख्या सबसे अधिक बढ़ी है।
●ट्रेन दुर्घटनाएँ: उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में रेलवे लाइनें हाथियों के गलियारों से होकर गुजरती हैं, जिससे कभी-कभार ट्रेन से टकराकर हाथियों की मौत के मामले सामने आते हैं। 2001 से 2025 के बीच उत्तराखंड में करीब 27 हाथी ट्रेन की चपेट में आकर मारे गए हैं। हालांकि, रेलवे विभाग और वन विभाग मिलकर इस समस्या को कम करने के लिए कुछ उपाय कर रहे हैं, लेकिन यह समस्या अभी भी बनी हुई है।
●बिजली का करंट: अवैध रूप से लगाई गई बिजली की बाड़ या टूटी हुई बिजली की तारें भी हाथियों की मौत का एक बड़ा कारण बनती हैं। किसान अक्सर जंगली जानवरों को अपनी फसलों से दूर रखने के लिए अवैध तरीके से बिजली की बाड़ लगाते हैं, जो हाथियों के लिए जानलेवा साबित होती है।
●शिकार और जहर: अवैध शिकारियों द्वारा हाथियों को मारना भी अप्राकृतिक मौतों का एक कारण है। कई बार जहर देकर भी हाथियों को मारा जाता है। हालांकि, वन विभाग लगातार गश्त और निगरानी का दावा करता है, लेकिन ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं।
●सड़क हादसे: राजमार्ग और सड़कें भी हाथियों के रास्तों से होकर गुजरती हैं, जिससे वे वाहनों की चपेट में आ जाते हैं। बढ़ते यातायात और तेज रफ्तार गाड़ियाँ भी इन विशालकाय जानवरों के लिए खतरा बन गई हैं।

सरकार और वन विभाग के प्रयास
इन अप्राकृतिक मौतों पर वन विभाग चुप्पी साध कर बैठी है। वन विभाग और सरकार इन समस्याओं को कम करने के लिए कई कदम उठा रही है। मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है और नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा राशि भी बढ़ाई गई है। रेलवे पटरियों पर हाथियों की आवाजाही का पता लगाने के लिए इंटेलिजेंट सिस्टम भी लगाए जा रहे हैं। हालाँकि, इन प्रयासों के बावजूद समस्या की गंभीरता को देखते हुए और अधिक कठोर और प्रभावी उपायों की आवश्यकता है।
कैसे की जाए सकती हे इसमे कमी
हाथियों का इन अप्राकृतिक मौतों को रोकने के लिए सरकार, वन विभाग और स्थानीय समुदायों को मिलकर साथ काम करना होगा-
1- हाथी गलियारों को सुरक्षित रखना और अतिक्रमण से मुक्त करना सबसे महत्वपूर्ण कदम है।
2- अवैध बिजली की बाड़ लगाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
3- ट्रेन और सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तकनीकी और बुनियादी ढांचे में सुधार जरूरी है।
4- जंगलों की गुणवत्ता को सुधारना ताकि हाथी भोजन की तलाश में मानव बस्तियों की ओर न आएं।
Author Profile

Latest entries
UncategorizedDecember 25, 2025पेंच की बाघिन का ‘हवाई सफर’….
UncategorizedDecember 23, 2025JU में जैवविविधता और जलवायु परिवर्तन पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ
UncategorizedDecember 20, 2025हरदा बालाघाट के बांस के फर्नीचर एवं सजावट के सामान को लोगों ने सराहा
UncategorizedDecember 18, 2025सांभर झील का ‘गुलाबी अवतार’
