श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर)
पिछले कुछ दिनों से श्रीनगर के दो प्रमुख संस्थानों, कश्मीर विश्वविद्यालय (UoK) और शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SKIMS) में एक हिमालयी काला भालू ने हड़कंप मचा रखा है। इस भालू को पकड़ने के लिए वन्यजीव विभाग द्वारा कई दिनों से बड़े पैमाने पर बचाव अभियान चलाया जा रहा है, जिसने छात्रों, स्टाफ और स्थानीय निवासियों में भारी दहशत पैदा कर दी है।
कई दिनों से भटक रहा है भालू
भालू को सबसे पहले 28 नवंबर, 2025 को हजरतबल इलाके मे देखा गया था। जब कुछ आवारा कुत्तों के झुंड ने उसका पीछा किया तो भालू बिजली के एक खंभे पर चढ़कर विश्वविद्यालय परिसर में कूद गया, जिससे लड़कियों के छात्रावास में अफरा-तफरी मच गई। विश्वविद्यालय प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई करते हुए छात्रों को अपने कमरों के अंदर रहने की सलाह दी और वन्यजीव विभाग को सूचित किया।
वन्यजीव अधिकारियों और विश्वविद्यालय सुरक्षा गार्डों ने परिसर में एक व्यापक तलाशी अभियान शुरू किया, जिसमें माना जा रहा था कि जानवर वनस्पति उद्यान में छिपा हुआ है। कुछ दिनों तक खोजबीन के बाद जब भालू का कुछ पता नहीं चला, तो विश्वविद्यालय को सुरक्षित घोषित कर दिया गया।
हालांकि, सोमवार शाम को एक बार फिर भालू लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित SKIMS अस्पताल परिसर के अंदर फिर से दिखाई दिया। अस्पताल परिसर में लगे सीसीटीवी फुटेज में जानवर को घूमते हुए देखा गया, जिससे मरीजों, कर्मचारियों और वहां मौजूद लोगों में एक नई घबराहट फैल गई।
बचाव अभियान है जारी
वन्यजीव विभाग ने दोनों संस्थानों में तत्काल कार्रवाई की है। SKIMS के निदेशक, प्रोफेसर एम. अशरफ गनी के निर्देश पर, परिसर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है और भालू को पकड़ने के लिए प्रमुख स्थानों पर जाल लगाए गए हैं। विभाग ड्रोन का उपयोग कर रहा है और जानवर की गतिविधियों को ट्रैक करने के लिए सीसीटीवी फुटेज की जांच कर रहा है।
वरिष्ठ वन्यजीव अधिकारी इंतसार सुहैल ने पुष्टि की कि तलाशी अभियान जारी है, लेकिन अभी तक भालू पकड़ा नहीं गया है। उन्होंने नागरिकों से खुले में कचरा न फेंकने की अपील की है, क्योंकि यह भालुओं को मानव बस्तियों की ओर आकर्षित करता है।
भालू के व्यवहार में बदलाव का कारण
अधिकारियों और विशेषज्ञों ने श्रीनगर के आसपास भालू के देखे जाने की बढ़ती घटनाओं के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया है। सामान्यतः, हिमालयी काले भालू सर्दियों में हाइबरनेट करते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में कम बर्फबारी, बढ़ते तापमान और खाद्य स्रोतों की आसान उपलब्धता के कारण उनका हाइबरनेशन पैटर्न बाधित हो रहा है, जिससे वे सर्दियों में भी सक्रिय रहते हैं।
जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, तब तक दोनों परिसरों के अधिकारियों ने छात्रों, स्टाफ और निवासियों से सतर्क रहने, सुनसान इलाकों में जाने से बचने और किसी भी असामान्य गतिविधि की तुरंत रिपोर्ट करने का आग्रह किया है।
Author Profile

Latest entries
UncategorizedDecember 25, 2025पेंच की बाघिन का ‘हवाई सफर’….
UncategorizedDecember 23, 2025JU में जैवविविधता और जलवायु परिवर्तन पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ
UncategorizedDecember 20, 2025हरदा बालाघाट के बांस के फर्नीचर एवं सजावट के सामान को लोगों ने सराहा
UncategorizedDecember 18, 2025सांभर झील का ‘गुलाबी अवतार’
