काजीरंगा नेशनल पार्क के पहले ‘जैव विविधता सर्वेक्षण’ में दर्ज की गईं 283 कीट और मकड़ियों की प्रजातियां

काजीरंगा (असम)

अपने गैडों और हाथियों के लिए प्रसिद्ध काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में पहली बार जैव विविधता सर्वेक्षण किया गया। यूं तो सर्वेक्षण 2023 मे ही किया गया था लेकिन उसका रिपोर्ट 2025 मे जारी किया गया। जिसमे अभयारण्य में कीटों और मकड़ियों की कुल 283 प्रजातियों को दर्ज किया गया हैं।

‘अभयारण्य के वन्य क्षेत्र में कीटों और मकड़ियों का अन्वेषणात्मक अध्ययन’ शीर्षक पर किए गए इस सर्वेक्षण में पूर्वी असम वन्यजीव प्रभाग के पनबारी रिजर्व वन क्षेत्र में प्रजातियों की प्रभावशाली विविधता का दस्तावेजीकरण किया गया था। यह सर्वेक्षण काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के वन कर्मचारियों के सहयोग से कॉर्बेट फाउंडेशन के कीटविज्ञानियों द्वारा किया और प्रकाशित किया गया।

कुल 283 प्रजातियों में से 254 है कीटों की और 29 है मकड़ियों की

अधिकारियों द्वारा किए गए सर्वेक्षण मे अभयारण्य मे कुल 283 प्रजातियां को पाया गया जिसमे से 254 प्रजातियां कीटों की पायी गई और 29 प्रजातियां मकड़ियों की।

इसके अंतर्गत यहां तितलियों और पतंगों की 85 प्रजातियों (30%) को दर्ज किया गया। वही चींटियों, मधुमक्खियों और ततैयों की 40 प्रजातियों (14%) को दर्ज किया गया तथा भृंगों की 35 प्रजातियां (12%) पाई गई।

ये ‘नन्हे इंजीनियर’ पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने मे निभाते है अपना अहम योगदान

पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने मे केवल विशाल जीवों की ही भूमिका नही होती बल्कि पर पृथ्वी पर मौजूद इन सूक्ष्म जीवों का भी अहम योगदान होता हैं। कीट और मकड़ियाँ परागणकर्ता, मृदा वायुसंचारक, कीट नियंत्रक और बीज प्रकीर्णनकर्ता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, जो पारिस्थितिकी तंत्र को फलते-फूलते रखने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।

वन एवं पर्यावरण मंत्री सर्वेक्षण की की सराहना

पर्यावरण एवं वन मंत्री चंद्र मोहन पटवारी ने इस अध्ययन की सराहना करते हुए इसे “ऐतिहासिक सर्वेक्षण” बताया और कहा कि “जलवायु परिवर्तन से प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा बना हुआ है, इसलिए सबसे छोटे जीवों की भी रक्षा करना बेहद ज़रूरी है। यह आधारभूत अध्ययन भविष्य के शोध का मार्गदर्शन करेगा और डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में हमारे जैव विविधता संरक्षण प्रयासों को मज़बूत करेगा।”

इनका संरक्षण है जरूरी

सर्वेक्षण के अनुसार वैश्विक स्तर पर लगभग 40% कीट प्रजातियाँ आवास हानि, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारण लुप्त हो रही हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के “नन्हे इंजीनियरों” की रक्षा करना उतना ही ज़रूरी है जितना कि गैंडों और हाथियों की सुरक्षा। अगर समय रहने पर इनकी रक्षा नही कि गई तो खाद्य जाल, मिट्टी की उर्वरता और वन पुनर्जनन ध्वस्त हो जाएँगे, जिससे पृथ्वी की जलवायु संबंधी झटकों को झेलने की क्षमता कमज़ोर हो जाएगी।

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The Forest Times
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