काजीरंगा मे खत्म हो रहें हैं घास के मैदान, WII ने एक अध्ययन मे किया खुलासा

असम

भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII), देहरादून के द्वारा किए गए एक अध्ययन में पता चला हैं कि असम के प्रसिद्ध काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में घास के मैदान बीते 110 वर्षों मे 318.3 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल मे कमी आई हैं। अध्ययन का परिणाम काफी चौकाने वाला है, क्योकि अगर एसा ही चलता रहा तो आगे चलकर काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान मे घास के मैदान के क्षेत्रफल में भारी कमी आने की संभावना हैं।

अध्ययन के अनुसार, 1913 और 2023 के बीच, काजीरंगा के घास के मैदानों का क्षेत्रफल 318.3 वर्ग किलोमीटर तक घट गया है, जो कि एक बड़े शहर के बराबर है। इस खुलासे से इस विश्व धरोहर स्थल पर गंभीर पारिस्थितिक संकट मंडराती नजर आ रही हैं, जोकि एक गंभीर विषय हैं।

कम हुए है घास के मैदान, तो वही वन क्षेत्र मे हुई है बढ़ोत्तरी

अध्ययन मे सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह निकलकर सामने आई कि जहा काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान मे घास के मैदान के क्षेत्रफल मे लगातार कमी देखने को मिल रही हैं, वही साथ-साथ यह भी सामने आया कि उद्यान के वन क्षेत्र मे भारी वृद्धि हुई हैं। 1913 में जो कुल वन क्षेत्र सिर्फ 0.6 वर्ग किलोमीटर था, वह 2023 तक बढ़कर 229.2 वर्ग किलोमीटर हो गया है जो कि सकारात्मक परिणाम हैं। पर इसका नकारात्मक पहलू भी निकल कर सामने आया कि वन क्षेत्रे वृद्धि का फायदा खासकर उन वन्यजीवों को होगा जो वनीय पर्यावरण मे निवास करते है, वही दूसरी तरफ घास के मैदान मे कमी विशेष रूप से उन शाकाहारी जीवों के लिए चिंता का विषय बनेगा, जो अपने भोजन और आश्रय के लिए इन खुले घास के मैदानों पर निर्भर करते हैं।

गैंडो के लिए है चिंता का विषय

काजीरंगा अपने एक सींग वाले गैंडों के लिए विश्व भर मे प्रसिद्ध है, जिनकी आबादी का दो-तिहाई हिस्सा इसी उद्यान में पाया जाता है। इन गैंडों के अलावा, यह उद्यान जंगली भैंसों, हाथियों, दलदली हिरणों (स्वैम्प डियर) और सांभर जैसे कई और शाकाहारी वन्यजीवों का भी घर है। ये सभी जीव अपनी पोषण संबंधी जरूरतों के लिए घास के मैदानों पर निर्भर करते हैं। घास के मैदान मे कमी के कारण इनके भोजन पर असर पड़ेगा।

घास के मैदानों के खोने से न केवल वन्यजीवों को खतरा है, बल्कि पूरे खाद्य श्रृंखला और बाढ़ के मैदानों के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुँच रहा है।

घास खत्म होने के कारण

उघान मे घास की कमी होने का मुख्य कारण बेहद पेचीदा है। अध्ययन मे बताया गया कि काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के घास के मैदान मे कुछ ऐसी बेकार पौधों का उतना है जो प्राकृतिक घास के विकास को रोक देते है तथा उन्हे बढ़ने नही देते। उन बेकार पौधो मे मुख्य रूप से मिकानिया माइक्रांथा (Mikania micrantha) और क्रोमोलेना ओडोराटा (Chromolaena odorata) जैसी कम से कम आठ प्रजातियां शामिल हैं। वे घास के मैदान पर तेजी से फैल जाते और घास के विकास को बाधित कर देते।

जलवायु परिवर्तन और जल संतुलन में बदलाव

घास के मैदानों के सिकुड़ने में जलवायु परिवर्तन और बदलता जल संतुलन भी एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। WII के अध्ययन में पिछले 110 वर्षों के जलवायु आंकड़ों का विश्लेषण किया गया, जिसमें उल्लेखनीय बदलाव देखे गए। न्यूनतम तापमान में वृद्धि हुई है, जिससे रातें पहले से अधिक गर्म हो रही हैं, और बारिश एवं आर्द्रता बढ़ने से मिट्टी की नमी में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि यह मिट्टी के लिए अच्छा लग सकता है, लेकिन यह समग्र पारिस्थितिकी तंत्र के नाजुक संतुलन को बिगाड़ रहा है। इसके अलावा, नदी की संरचना और जल प्रवाह में भी बदलाव हुआ है, जिससे जलाशय भी प्रभावित हुए हैं।

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The Forest Times
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