चंद्रपुर मे बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष, खुन की प्यासी बनती जा रही है भूमि

चंद्रपुर (महाराष्ट्र)

महाराष्ट्र का चंद्रपुर जिला ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व (TATR) का गढ़ हैं। हालांकि, पिछले कुछ सालों से यह क्षेत्र मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष का केंद्र बन गया है, जिसके चलते ग्रामीणों में दहशत और असुरक्षा का माहौल है। पिछले 9 महीनों में वन्यजीवों के कारण 30 लोगों नें अपनी जान गवाई हैं और 120 से अधिक घायल हुए हैं। अकेले सितंबर माह मे 5 लोगों की जान गई है, यहा तक की वन्यजीवों के आतंक से मवेशियों और फसलों को भी भारी नुकसान हुआ है।

क्यो है चंद्रपुर मे इतना मानव-वन्यजीव संघर्ष?

चंद्रपुर में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष के पीछे कई मुख्य कारण है जो मानव के लिए काल बनकर आती हैं, और क्षेत्र को खुन की प्यासी बनाकर कई जिदंगियो को निगल चुकी हैं।

टाइगर रिजर्व के करीब है क्षेत्र- ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व चंद्रपुर जिले में ही स्थित हैं, जिसकी वजह से बाघ हमेशा ग्रामीण इलाकों मे आ जाते हैं, जो मानव-वन्यजीव संघर्ष का मुख्य कारण बनती हैं। विशेष रूप से ब्रह्मपुरी डिवीजन में, जहां हाल ही में सबसे अधिक घटनाएं हुई हैं।

बढ़ती वन्यजीव आबादी- संरक्षण प्रयासों के कारण ताडोबा जैसे क्षेत्रों में बाघों और अन्य वन्यजीवों की संख्या बढ़ी है। चंद्रपुर वन विभाग के अनुसार बाघों की संख्या 2020 में 191 से 2025 में बढ़कर 347 हो गई है। यही कारण है कि क्षेत्र मे बाघों का आतंक और उनके हमलों के मामले ज्यादातर देखे जाते हैं।

वन क्षेत्रों में अतिक्रमण- कृषि और मानव बस्तियों का जंगल के करीब तक विस्तार होने के कारण वन्यजीवों का आवास कम कर रहा है, जिससे वे भोजन और पानी की तलाश में अक्सर गांवों की तरफ आ जाते हैं।

वन उत्पादों का संग्रहण- ग्रामीण अक्सर महुआ या तेंदू पत्ता जैसे वन उत्पाद इकट्ठा करने के लिए जंगल में जाते हैं, जिससे उनका जानवरों से सीधा सामना होता है।

शिकार का अभाव- जंगल में शिकार की कमी के कारण वन्यजीव शिकार की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों में आ जाते हैंऔर मनुष्यों और मवेशियों को अपना शिकार बना लेते हैं।

कैसे लगाया जा सकता है इसपर रोकथाम

चंद्रपुर मे मानव-वन्यजीव संघर्ष को पूरी तरह रोकथाम तो नही लगाया जा सकता है, पर इसे कम करने के लिए प्रयास जरूर किए जा सकते हैं। चंद्रपुर एक जंगली इलाका क्षेत्र है, जिसकी वजह से वन्यजीवों का वहां आना-जाना सामान्य हैं पर यह वजह इंसानों के जीवन पर भारी पड़ जाती हैं।

अधिकारियों ने इस संकट से निपटने के लिए प्राथमिक प्रतिक्रिया दल (पीआरटी) को शामिल किया है, जबकि चंद्रपुर के ग्रामीण और स्थानीय नेताओं पर वन विभाग “लापरवाघी” का आरोप लगाया जा रहा है, और वर्षों से ऐसे घातक हमलों के बाद इसी तरह की मांगें की जा रही हैं। इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन और वन विभाग पर भारी दबाव है। कुछ प्रयास किए गए हैं, जैसे कि वित्तीय सहायता बढ़ाना, संवेदनशील क्षेत्रों में बाड़ लगाना, और समस्याग्रस्त बाघों को पकड़ना या स्थानांतरित करना। हालांकि, इन उपायों को अभी तक पर्याप्त सफलता नहीं मिली है। विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल बाघों को स्थानांतरित करना कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं है।

समस्या का समाधान तभी संभव है जब इसमें स्थानीय समुदाय को भी शामिल किया जाए। ग्रामीणों को जागरूकता अभियान के माध्यम से शिक्षित करना, उन्हें वैकल्पिक आजीविका के साधन उपलब्ध कराना और क्षतिपूर्ति योजनाओं को और प्रभावी बनाना आवश्यक है। जब तक मानव और वन्यजीवों के बीच एक संतुलित सह-अस्तित्व स्थापित नहीं होता, तब तक चंद्रपुर में यह संकट गहराता ही रहेगा। इस चुनौती को सिर्फ वन्यजीव संरक्षण के नज़रिए से नहीं, बल्कि एक मानवीय संकट के रूप में भी देखने की जरूरत है।

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The Forest Times
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