दिल्ली
दिल्ली के 7 डीडीए जैव विविधता पार्कों मे ड्रैगनफ्लाई और डैम्सेलफ्लाई की कुल प्रजातियां पर तीन दिवसीय (24 से 27 सितंबर तक) गणना सर्वेक्षण किया गया। जिससे निकले डाटा के अनुसार एक साल के दौरान ड्रैगनफ्लाई और डैम्सेलफ्लाई की कुल संख्या में 54% की वृद्धि दर्ज की गई है।
2024 मे ड्रैगनफ्लाई और डैम्सेलफ्लाई की कुल संख्या 8,630 थी अब वह 2025 मे बढ़कर 13,253 हो गए हैं। वही उनकी प्रजातियां भी 94 से बढ़कर 118 हो गई हैं। सबसे अधिक वृद्धि नीला हौज़, अरावली और कालिंदी मे देखने को मिली हैं।
इन जैव विविधता पार्कों में ड्रैगनफ्लाई और डैमसेल्फ्ली की सामान्य प्रजातियों में डिच ज्वेल, गोल्डन डार्टलेट, वांडरिंग ग्लाइडर, कोरोमंडल मार्श डार्ट और कॉमन पिक्चर विंग शामिल हैं।

कमला नेहरू रिज वृद्धि मे रहा सबसे आगे
कालिंदी और कमला नेहरू रिज ने मिलकर शहर भर में हुई गणना के आधे से ज़्यादा हिस्से का प्रतिनिधित्व किया गया।गणना के अनुसार 26 प्रजातियों (3,935 कुल संख्या) के साथ कमला नेहरू रिज मे सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई।उसके बाद कालिंदी 20 प्रजातियां (3,682 कुल संख्या) और अरावली मे 16 प्रजातियां (2,249 कुल संख्या) दर्ज की गई।
पिछले साल की तुलना में अरावली मे 10 प्रजातियां से बढ़कर 16 पायी गई, कालिंदी मे 14 से बढ़कर 20 पाई गई वही नीला हौज़ मे 5 से बढ़कर 15 प्रजातियां देखने को मिली। कमला नेहरू रिज मे 25 प्रजातियों से बढ़कर 26 पाई गई वही तुगलकाबाद पार्क में 12 से बढ़कर 14 दर्ज की गई। यमुना नदी में यह संख्या 21 पर स्थिर रही, जबकि तिलपथ में 7 से 6 प्रजातियों की गिरावट देखी गई।
प्रतिदिन 30-100 मच्छरों को खा जाती है एक ड्रैगनफ्लाई
ड्रैगनफ़्लाई और डैमसेल्फ़लाई जैव विविधता मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इनकी उपस्थिति आर्द्रभूमि के स्वास्थ्य पर नज़र रखती हैं। इनके लार्वा अवस्थाओं को स्वच्छ, पर्याप्त ऑक्सीजन युक्त पानी की आवश्यकता होती है, और वे लार्वा और वयस्क दोनों ही अवस्था मे मच्छरों के भयंकर शिकारी होते हैं। एक दिन मे एक ड्रैगनफ्लाई और एक डैमसेल्फ्ली लगभग 30-100 मच्छरों को खा जाते हैं जो डेंगू और मलेरिया की समस्या को कम करने मे मदद करती हैं।

संरक्षण हैं जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि ड्रैगनफ्लाई और डैमसेल्फ्ली मच्छरों और कृषि कीटों सहित कीट आबादी को नियंत्रित करके एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक भूमिका निभाते हैं। इनकी वृद्धि डीडीए के संरक्षण प्रयासो का सफल नतीजा हैं। इनका संरक्षण जैव विविधता के लिए आवश्यक हैं।
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