दिवाली पर मंडरा रहा है उल्लू पर खतरा, वन विभाग पूरी तरह अलर्ट

दिवाली की तैयारियां कुछ दिन पहले से ही जोरो-शोरो से शुरू हो जाती है। रोशनी और खुशियों के लिए जाने जाना वाला यह त्योहार; जो चारों तरफ रोशनी फैलाता हैं, तो वही दूसरी तरफ कुछ लोगों के अंधविश्वास के चलते कुछ बेजुबान जानवरों के जान पर संकंट बन कर भी आता हैं। खासकर धन की देवी लक्ष्मी के वाहन माने जाने वाले उल्लू के लिए।

तंत्र-मंत्र और काले जादू के नाम पर उल्लू का दिवाली के कुछ समय पहले से ही अवैध शिकार और व्यापार होना शुरू हो जाता हैं। इस गंभीर मुद्दे पर लगाने लगाने के लिए हर साल दिवाली के समय वन विभाग पूरी तरह से सतर्क होते है जिससे उल्लू के अवैध शिकार पर रोक लगाया जा सके।

क्यों होता हैं दिवाली पर उल्लू का अवैध शिकार?

‘उल्लू’ को धन की देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता हैं। सदियों से चलती आ रही मान्यता है कि अगर दिवाली की रात देवी लक्ष्मी को अगर उल्लू की बलि दी जाए, तो देवी उनके घर में हमेशा के लिए वास करती है और घर मे सदैव धन-संपत्ति की बरसात होती हैं। इसके अलावा उल्लुओं के विभिन्न अंग जैसे पंजे, हड्डियां, पंख और खून का इस्तेमाल इस दिन तांत्रिक क्रियाओं मे किया जाता हैं।

इन्ही अंधविश्वास के चलते दिवाली के कुछ दिन पहले से ही उल्लुओं की मांग बढ़ जाती है। यहा तक की शिकारी उनका अवैध शिकार करके उनकों 50 हजार से 1 लाख तक मे बेचते हैं। इन्ही क्रूर और बेबुनियाद मान्यताओं की वजह से दिवाली के दौरान उल्लुओं का अवैध व्यापार खूब फलता-फूलता है।

बढ़ती मांग और ऊँची कीमतें

जैसे-जैसे दिवाली नजदीक आती है, उल्लुओं की अवैध बाजार में कीमतें आसमान छूने लगती हैं। तस्कर मुंह मांगी कीमत पर इन्हे बेचते हैं। कुछ विशेष प्रजातियों के उल्लू खासकर जिनके सिर पर ‘कान’ जैसे गुच्छे होते है उन्हे सबसे ज्यादा ताकतवर माना जाता है। इस अंधविश्वास के कारण इन प्रजातियों का शिकार सबसे अधिक होता है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत सुरक्षित होता है उल्लू

भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत उल्लू की सभी प्रजातियों को संरक्षित श्रेणी में रखा गया है। इस कानून के तहत उल्लू का शिकार करना, पकड़ना या उनका व्यापार करना एक संगीन अपराध है, जिसके लिए सख्त सजा का प्रावधान है। इसके बावजूद, तस्करों और अंधविश्वासी लोगों के गठजोड़ के कारण यह काला धंधा जारी है।

वन विभाग की सतर्कता

पिछले कुछ वर्षों में इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए वन विभाग और वन्यजीव संस्थाएं लगातार सतर्कता बरत रही हैं। दिवाली से पहले ही कई राज्यों में वन क्षेत्रों और संभावित तस्करी वाले इलाकों में गश्त बढ़ा दी जाती है। अधिकारियों को सलाह दी जाती है कि वे बाजार और संवेदनशील इलाकों पर कड़ी नजर रखें।

केवल कानून से ही इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इसके लिए सामाजिक जागरूकता सबसे जरूरी है। लोगों को यह समझना होगा कि किसी भी जीव की बलि देकर धन या समृद्धि नहीं मिल सकती। यह एक क्रूर और अमानवीय कृत्य है जो प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ता है।

Author Profile

The Forest Times
The Forest Times

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top