भोपाल (मध्य प्रदेश)
मध्य प्रदेश मे चीतों को उनका नया आशियाना मिल गया है। कूनो और गांधी सागर के बाद अब नौरादेही चीतों का तीसरा घर बन गया है। 30 अक्टूबर को मुख्यमंत्री मोहन यादव ने आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा की। जिससे यह साफ़ स्पष्ट हो गया कि चीतों को अब राजस्थान नहीं भेजा जाएगा, बल्कि उन्हें राज्य के भीतर ही तीसरा सुरक्षित ठिकाना प्रदान किया जाएगा। केंद्र सरकार से इसकी मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने नौरादेही में चीता परियोजना के लिए 4 करोड़ रुपये की पहली किस्त जारी की है, जिससे की विकास कार्य तेजी से बढ़ सके।
तीसरा घर बना नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य
अब तक प्रदेश मे चीतों का मुख्य सिर्फ दो ही आशियाना था। पहला कूनो राष्ट्रीय उद्यान और गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य। लेकिन अब से नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य भी मध्य प्रदेश के चीतों का तीसरा प्रमुख आवास स्थल होगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने भी अपनी मंजूरी दे दी है। इस कदम का मुख्य उद्देश्य चीतों की आबादी को केवल एक स्थान पर केंद्रित करने के बजाय, विभिन्न आवासों में फैलाना है, ताकि उनके अस्तित्व को सुनिश्चित किया जा सके और किसी भी संभावित बीमारी या प्राकृतिक आपदा के जोखिम को कम किया जा सके।
क्या है नौरादेही की विशेषताएँ
नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य को चीतों के लिए एक आदर्श निवास स्थान माना जाता है। यह अभयारण्य मध्य प्रदेश के सागर और दमोह जिलों में फैला हुआ है, जो 1,197 वर्ग किमी के विशाल क्षेत्र को कवर करता है, जिससे चीतों को घूमने के लिए पर्याप्त जगह मिलेगी। इस क्षेत्र में शाकाहारी जीवों, जैसे चीतल और सांभर, की अच्छी खासी आबादी है, जो चीतों के लिए शिकार का अवसर प्रदान करती है। शिकारगाह को और बेहतर बनाने के लिए प्रयास जारी हैं। साथ ही अभयारण्य में चीतों के लिए बाड़े बनाने, पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने और अन्य आवश्यक बुनियादी ढाँचे विकसित करने का काम चल रहा है।
रहेंगी कुछ चुनौतियां भी
हालांकि नौरादेही में चीता परियोजना को लेकर उत्साह है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी हैं। नौरादेही के क्षेत्र में पहले से ही बाघों और तेंदुओं की आबादी है, जिससे नए आने वाले चीतों के साथ संभावित संघर्ष या प्रतिस्पर्धा का जोखिम हो सकता है। वन्यजीव अधिकारी इस चुनौती से निपटने के लिए प्रबंधन योजनाएँ तैयार कर रहे हैं।कुल मिलाकर, नौरादेही अभयारण्य को चीतों के तीसरे घर के रूप में विकसित करना, भारत में चीता संरक्षण के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका उद्देश्य इन शानदार बड़ी बिल्लियों के लिए एक सुरक्षित और स्थायी भविष्य सुनिश्चित करना है।
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