●हरियाली बढ़ी, पर जंगलों का स्वास्थ्य गिरा: आईआईटी खड़गपुर के अध्ययन में सामने आया कि देश में वनक्षेत्र का आँकड़ा बढ़ रहा है, लेकिन जंगलों की गुणवत्ता घट रही है। पूर्वी हिमालय, पश्चिमी घाट और गंगा मैदानी इलाक़ों में पेड़ों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता लगातार कम हो रही है, जिससे जैव विविधता और जलवायु संतुलन पर खतरा बढ़ा है।
●व्यापक अतिक्रमण का संकट: नवीनतम आँकड़ों के अनुसार 25 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 13 लाख हेक्टेयर से अधिक वनभूमि पर अतिक्रमण हो चुका है। यह स्थिति खाद्य और जल सुरक्षा के साथ-साथ आदिवासी और ग्रामीण समुदायों के जीवन को गहरी चुनौती देती है।
●राज्यों की कार्रवाई : जाँच और हरियाली अभियानमहाराष्ट्र सरकार ने पुराने वनभूमि आवंटनों की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित किया है। उत्तराखंड के मसूरी वन प्रभाग में 7,375 वन सीमा स्तंभों के गायब होने पर केंद्र ने जांच के आदेश दिए हैं।
उत्तर प्रदेश में “सेवा पर्व” के दौरान 15 लाख पौधे लगाने, प्लास्टिक-मुक्ति और वर्षा जल-संग्रह जैसी गतिविधियाँ चल रही हैं। वहीं मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की सिफारिश पर 25 से अधिक पेड़ों की कटाई वाले विकास कार्यों की समीक्षा के लिए उच्चस्तरीय समिति बनाई गई है।
●वैश्विक परिप्रेक्ष्य : दबाव में दुनिया के जंगलसाइंस पत्रिका के नए अध्ययन से पता चला है कि 2000–2020 के बीच विश्व के आधे से अधिक जंगलों में खंडन (fragmentation) बढ़ा, खासकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में। एक अन्य रिपोर्ट बताती है कि वनों की कटाई ने करोड़ों लोगों को बढ़ती गर्मी और उससे जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों के सामने ला खड़ा किया है।
साल 2024 में भूमि और जंगल बचाने वाले 146 पर्यावरण रक्षकों की हत्या या गुमशुदगी दर्ज हुई। अमेरिका में नए शोध से पता चलता है कि विशाल आग और तूफान जैसे “प्राकृतिक व्यवधान” अब मानव-जनित बदलावों से अधिक तेज़ी से परिदृश्य को बदल रहे हैं।
निष्कर्ष
आज की खबरें एक स्पष्ट संदेश देती हैं—वन केवल हरियाली का प्रतीक नहीं, बल्कि जलवायु संतुलन, जलस्रोतों की सुरक्षा और मानव अस्तित्व का आधार हैं। भारत सहित दुनिया को पेड़ों की गिनती से आगे बढ़कर उनके स्वास्थ्य, संरक्षण और सामुदायिक प्रबंधन पर गंभीरता से काम करना होगा। सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिक—सभी को मिलकर यही संकल्प लेना होगा कि आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संतुलन साथ-साथ चलें।
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