पुणे (महाराष्ट्र)
भारत सरकार ने देश में पहली बार तेंदुओं की आबादी को नियंत्रित करने के लिए एक वैज्ञानिक और मानवीय पहल को मंजूरी दे दी है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने महाराष्ट्र सरकार के इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसमें मानव-तेंदुआ संघर्ष को कम करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर तेंदुओं का जन्म-नियंत्रण (गर्भनिरोध) किया जाएगा। यह कदम महाराष्ट्र के पुणे जिले के जुन्नर वन प्रभाग में बढ़ते हमलों और मानव बस्तियों के पास तेंदुओं की बढ़ती संख्या के मद्देनजर उठाया गया है।
परियोजना का उद्देश्य
इस पहल का मुख्य उद्देश्य मानव और मवेशियों पर तेंदुओं के हमलों को कम करना है, जो अक्सर भोजन और आवास की तलाश में मानव बस्तियों मे घुस आते हैं। जुन्नर, नासिक और अहमदनगर जैसे क्षेत्र मानव-तेंदुआ संघर्ष के प्रमुख केंद्र बन गए हैं, जहां गन्ने के खेत तेंदुओं के लिए छिपने की जगह बन गए हैं।
वन अधिकारियों ने बताया कि पारंपरिक तरीकों, जैसे कि तेंदुओं को पकड़कर कहीं और स्थानांतरित करना, प्रभावी साबित नहीं हुआ है, और अवैध शिकार पर भी रोक है। इसलिए, वैज्ञानिक प्रबंधन की दिशा में यह कदम उठाया गया है, जिसे संरक्षणवादी वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप मानते हैं।
प्रायोगिक चरण और तरीका
यह परियोजना एक प्रायोगिक आधार पर शुरू होगी, जिसमें पहले चरण में पाँच मादा तेंदुओं को लक्षित किया जाएगा।
●तरीका: इस परियोजना में इम्यूनोकॉन्ट्रासेप्शन तकनीक का उपयोग किया जाएगा। यह एक गैर-आक्रामक विधि है, जिसमें तेंदुओं को एक विशेष इंजेक्शन या डार्ट दिया जाता है, जो अस्थायी रूप से गर्भधारण की क्षमता को रोक देता है। यह सर्जरी की तुलना में कम आक्रामक है और जानवर को स्थायी नुकसान नहीं पहुंचाता है।
●निगरानी: जिन तेंदुओं का इलाज किया जाएगा, उन्हें रेडियो-कॉलर पहनाया जाएगा और भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में महीनों तक उनके स्वास्थ्य, व्यवहार और गतिविधियों की बारीकी से निगरानी की जाएगी।
उत्तर प्रदेश में लायी जाएगी यह योजना
महाराष्ट्र के अलावा, उत्तर प्रदेश का बिजनौर वन विभाग भी इसी तरह की पहल पर विचार कर रहा है। बिजनौर में भी मानव-तेंदुआ संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं। वन विभाग ने तेंदुओं की नसबंदी के लिए ₹610 करोड़ की एक परियोजना शासन को स्वीकृति के लिए भेजी है।
विशेषज्ञों की राय
वन्यजीव विशेषज्ञों ने इस कदम का स्वागत किया है। उनका मानना है कि यह जनसंख्या नियंत्रण का एक मानवीय और विज्ञान-आधारित तरीका है। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने इस परियोजना के वैज्ञानिक प्रोटोकॉल की देखरेख की है, जिसके शोध ने इस पहल को आकार दिया।
यदि जुन्नर पायलट प्रोजेक्ट सफल होता है, तो यह पूरे भारत में मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए एक नए मॉडल का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
यह पहल दर्शाती है कि सरकार घातक नियंत्रण के बजाय वैज्ञानिक और टिकाऊ समाधानों की ओर बढ़ रही है ताकि मानव और वन्यजीव दोनों सुरक्षित रह सकें।
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