भोपाल में “ट्री ऑफिसर” रहस्य पर NGT की सख़्ती

प्रशांत मेश्राम,भोपाल

राजधानी भोपाल में पेड़ों की कटाई को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने उस “ट्री ऑफिसर” की पहचान और भूमिका पर सवाल उठाए हैं, जिसने शहर में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की अनुमति दी। एनजीटी ने इसे “रूट कॉज़” (मूल कारण) बताकर विस्तृत जांच का आदेश दिया है।

मामला क्या है

●भोपाल नगर निगम ने हाल ही में कई परियोजनाओं के लिए बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई की अनुमति दी।

●यह अनुमति किस अधिकारी ने दी, इस पर स्पष्ट आदेश या हस्ताक्षरित दस्तावेज़ नहीं मिले हैं।

●निगम का दावा है कि आदेश एक “नोट शीट” पर आधारित था, लेकिन उसमें ट्री ऑफिसर का औपचारिक हस्ताक्षर या स्पष्ट नाम दर्ज नहीं है।

NGT का रुख

मुख्य पीठ, भोपाल: एनजीटी ने निगम से दो हफ्तों में विस्तृत जवाब मांगा है।

●ट्रिब्यूनल का कहना है कि कानून के मुताबिक—मध्य प्रदेश वृक्षों का संरक्षण (नगरीय क्षेत्र) अधिनियम 2001—पेड़ों की कटाई की अनुमति केवल नियुक्त ट्री ऑफिसर ही दे सकता है।

●NGT ने पूछा, “जब आदेश पर ट्री ऑफिसर का हस्ताक्षर नहीं है, तो अनुमति मान्य कैसे हुई?”

●अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि निगम पूरा रिकॉर्ड, नोट शीट और निर्णय की प्रक्रिया पेश करे।

निगम की दलील

●नगर निगम ने कहा कि सहायक आयुक्त ने “ट्री ऑफिसर द्वारा तैयार नोट शीट” के आधार पर आदेश भेजा।

●निगम का तर्क है कि “प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी थी”, लेकिन स्पष्ट लिखित आदेश देने का समय मांगा है।

पर्यावरणीय चिंता

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि भोपाल जैसे शहर में हर साल हरियाली कम होती जा रही है।

लगातार पेड़ कटने से शहरी तापमान बढ़ने, हवा की गुणवत्ता गिरने और जैव विविधता पर असर की आशंका है।

विशेषज्ञों ने एनजीटी से इस पूरे मामले में कड़ी कार्रवाई की मांग की है, ताकि आगे बिना अनुमति के पेड़ न काटे जा सकें।

आगे की राह

●एनजीटी ने नगर निगम को अगली सुनवाई तक ट्री ऑफिसर की नियुक्ति, योग्यता और प्रक्रिया से जुड़े सारे दस्तावेज देने का आदेश दिया है।

●अगर निगम संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया तो जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई तय मानी जा रही है।

निष्कर्ष

भोपाल का यह मामला सिर्फ पेड़ों की कटाई का नहीं, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और कानूनी जवाबदेही की बड़ी परीक्षा है। NGT की सख़्ती से उम्मीद है कि शहर में हरियाली बचाने की लड़ाई को नया बल मिलेगा और पेड़ों को बचाने के कानूनों को और मज़बूती से लागू किया जाएगा।

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The Forest Times
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