मणिपुर केंद्रीय वन प्रभाग द्वारा स्कूली बच्चों को प्रकृति के नैतिक मूल्य और मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व के बारे में किया गया जागरूक

एम.बी. लुवांग, इम्फाल (मणिपुर)

71वें वन्यजीव सप्ताह समारोह 2025 के उपलक्ष्य पर 24 सितंबर को राज्य के विभिन्न जिलों में मणिपुर केंद्रीय वन प्रभाग द्वारा “वन्यजीवों के साथ जीवन” और “मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व” विषय पर जिला स्तरीय निबंध लेखन और चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम मणिपुर वन प्रशिक्षण संस्थान, लुवांगसांगबाम में आयोजित किया गया, जिसमें सेंट जॉर्ज हाई स्कूल के 200 से अधिक छात्रों ने भाग लिया।

वही मोरेह जिलें में तेंगनौपाल उप वन संरक्षक प्रभाग की अध्यक्षता में तेंगनौपाल जिले के छह स्कूलों के कुल 162 छात्रों ने उत्साहपूर्वक कार्यक्रम में भाग लिया। साथ ही चंदेल जिले के मॉडल आवासीय विद्यालय, मंत्री पंथा में भी कुल 120 छात्रों ने भाग लिया। इसके अलावा, थौबल जिले के थौबल कॉलेज के कुल 316 छात्रों ने भी भाग लिया। कुल मिलाकर 4 जिलों के 798 से अधिक छात्रों ने प्रतियोगिता में भाग लिया।

बच्चों को प्रकृति और वन्यजीवों के बारे मे करना चाहिए जागरूक- आईएफएस विक्रम सुरेश नाधे

द फॉरेस्ट टाइम्स से बात करते हुए, मणिपुर केंद्रीय वन प्रभाग के जिला वन अधिकारी (डीएफओ) आई.एफ.एस. विक्रम सुरेश नाधे ने बताया कि हमारा मुख्य एजेंडा बच्चों को प्रकृति और वन्यजीवों के महत्व के बारे में जागरूक करना है, क्योंकि दोनों ही सभी जीवित प्राणियों के अस्तित्व और कल्याण के लिए आवश्यक हैं। प्रकृति हमें हवा प्रदान करती है जिसमें हम साँस लेते हैं, पानी जो हम पीते हैं, और भोजन जो हम खाते हैं। दूसरी ओर वन्यजीव आबादी को नियंत्रित करके पौधों के परागण और जैव विविधता को समृद्ध करके पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन बनाए रखते हैं। जब बच्चे इन अंतर्संबंधों के बारे में सीखते हैं, तो वे पर्यावरण के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी के साथ बड़े होंगे।

सिखाई गई प्रकृति के नैतिक मूल्यों की जरूरत

बच्चों को प्रकृति और वन्यजीवों का मूल्य सिखाने से उनमें सभी जीवित प्राणियों के प्रति सहानुभूति और देखभाल विकसित करने में मदद मिलती है। इससे उन्हें यह एहसास होगा है कि मनुष्य प्रकृति से अलग नहीं बल्कि उसका एक हिस्सा है। अगर बच्चे इस रिश्ते को कम उम्र से ही समझ लें, तो उनके पर्यावरण के अनुकूल आदतें अपनाने की संभावना ज़्यादा होती है, जैसे कचरा कम करना, पानी बचाना, पेड़ लगाना और जानवरों की रक्षा करना। ऐसी जागरूकता न केवल पर्यावरण को सुरक्षित रखती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ भविष्य भी सुनिश्चित करती है।

मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व के बारे मे दी गई जानकरी

इसके अलावा थौबल ज़िले के डीएफओ डॉ. लीसांगथेम जेसीली ने कहा कि प्रकृति के संपर्क में रहने से बच्चों के विकास पर सीधा लाभ होता है। यह जिज्ञासा, रचनात्मकता और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। बागवानी, पक्षी-दर्शन या प्रकृति की सैर जैसी गतिविधियाँ बच्चों को पर्यावरण से सार्थक तरीके से जुड़ने में मदद कर सकती हैं। वन्यजीवों को महत्व देकर, बच्चे जीवन में संतुलन और शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व के महत्व के बारे में भी सीखते हैं। अंत में, बच्चों में प्रकृति और वन्यजीवों के महत्व को स्थापित करना एक स्थायी भविष्य के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जागरूकता और देखभाल के साथ, वे ज़िम्मेदार नागरिक बन सकते हैं जो पृथ्वी की रक्षा और देखभाल करते हैं।

निकाली गई रैली

प्रतियोगिताओं के बाद, “प्लास्टिक को ना कहें” विषय पर एक पैदल रैली सेवा पर्व 2025 भी निकाली गई। “एक बेहतर कल के लिए स्वच्छता और स्थिरता” छात्रों ने तख्तियाँ लेकर मार्च किया और प्लास्टिक के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाई और एक स्वच्छ, पर्यावरण-अनुकूल वातावरण की वकालत की। इस कार्यक्रम ने वन्यजीवों के साथ सद्भाव से रहने और प्लास्टिक के उपयोग को कम करके पर्यावरण की रक्षा करने के दोहरे संदेश को सफलतापूर्वक व्यक्त किया। छात्रों और शिक्षकों की उत्साहपूर्ण भागीदारी ने युवा पीढ़ी में वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के महत्व को रेखांकित किया।

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The Forest Times
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