क्या है वन कार्बन स्टॉक?
वन कार्बन स्टॉक (Forest Carbon Stock) का मतलब है – वनस्पति, मिट्टी, जड़ों, गिरी हुई पत्तियों और मृत लकड़ी में संचित कार्बन की मात्रा। यह आंकड़ा बताता है कि जंगल वातावरण से कितना कार्बन सोखकर उसे सुरक्षित रख पा रहे हैं। जितना अधिक कार्बन स्टॉक, उतना अधिक योगदान जलवायु परिवर्तन को रोकने और ग्रीनहाउस गैसों को संतुलित करने में।
जलवायु परिवर्तन की चुनौती से जूझती दुनिया के लिए भारत से एक अच्छी खबर आई है। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) की नई रिपोर्ट बताती है कि इकोसिस्टम सर्विसेज इम्प्रूवमेंट प्रोजेक्ट (ESIP) के अंतर्गत आने वाले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चयनित वन क्षेत्रों में कार्बन स्टॉक में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई है।मध्य प्रदेश के वनों में 9.38% और छत्तीसगढ़ में 7.51% वृद्धि हुई है। यह उपलब्धि न केवल राज्य, बल्कि पूरे देश के लिए पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
ESIP परियोजना: पृष्ठभूमि
शुरुआत: 2018-19
समर्थन: विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित
उद्देश्य: 1-वनों में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का संरक्षण
2-कार्बन स्टॉक की निगरानी और सुधार
3-वनों के सतत् उपयोग से स्थानीय आजीविका को बढ़ावा देना
परियोजना के अंतर्गत मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई वन परिक्षेत्र चुने गए, जहाँ पौधारोपण, प्राकृतिक पुनर्जनन और संरक्षण के प्रयास किए गए।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
| क्षेत्र / वन परिक्षेत्र | कार्बन स्टॉक वृद्धि (2018-19 → 2022-23) |
| मध्य प्रदेश (कुल ESIP क्षेत्र) | ~ 9.38% वृद्धि |
| छत्तीसगढ़ (कुल ESIP क्षेत्र) | ~ 7.51% वृद्धि |
| एमपी के परिक्षेत्र | बुधनी, भौंरा, बनापुरा-इटारसी-सुखतवा: ~ 9.7% से 13.3% वृद्धि |
| औसत कार्बन घनत्व | बुधनी रेंज: 59.8 से 66.2 tC/ha |
यह दर्शाता है कि मात्र चार वर्षों में ही वन क्षेत्रों की कार्बन सोखने की क्षमता में बड़ा सुधार हुआ है।
यह बदलाव कैसे संभव हुआ?
●समृद्ध पौधारोपण (Enrichment Plantation): जहाँ पौधों की कमी थी, वहाँ नए पौधे लगाए गए।
●प्राकृतिक पुनर्जनन (Assisted Natural Regeneration): कटे-फटे वनों में प्राकृतिक रूप से उगने वाले पौधों को संरक्षण दिया गया।
●वन संरक्षण: अवैध कटाई, चराई और आग जैसी समस्याओं पर नियंत्रण।
●वैज्ञानिक निगरानी: कार्बन आकलन में पेड़ों के साथ मिट्टी, गिरी हुई पत्तियाँ, जड़ें और मृत लकड़ी को भी शामिल किया गया।
रिपोर्ट का महत्व
●यह परिणाम भारत को उसके पेरिस समझौते (Paris Agreement) के अंतर्गत किए गए वादों (NDCs) को पूरा करने में मदद करेगा।
●जैव विविधता संरक्षण: बेहतर कार्बन स्टॉक का मतलब है स्वस्थ जंगल और अधिक वन्यजीव आवास।
●जल सुरक्षा और मिट्टी संरक्षण: वनों की सेहत सुधरने से जलस्रोत और मिट्टी भी सुरक्षित रहती है।
●स्थानीय समुदायों को लाभ: वनों पर निर्भर ग्रामीणों की आजीविका भी बेहतर होगी।
चुनौतियाँ भी मौजूद
●मानवीय दबाव: ईंधन लकड़ी की कटाई, मवेशियों की चराई, वनोपज संग्रह आदि।
●संवेदनशील क्षेत्र: कुछ जंगल जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, वहाँ कार्बन घनत्व अब भी कम है।
●सीमित आकलन: यह रिपोर्ट केवल परियोजना क्षेत्र तक सीमित है, जबकि पूरे राज्य के वनों और गाँवों में फैले पेड़ों का डेटा शामिल नहीं है।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इस तरह की परियोजनाएँ और व्यापक स्तर पर लागू की जाएँ तो भारत न केवल जलवायु लक्ष्यों को पूरा करेगा, बल्कि भूमि क्षरण न्यूनीकरण (Land Degradation Neutrality) की दिशा में भी बड़ा कदम बढ़ा सकेगा।
इसके लिए आवश्यक है—
●जनभागीदारी को बढ़ाना
●स्थायी आजीविका विकल्प देना
●निरंतर निगरानी और निवेश बनाए रखना
निष्कर्ष
ICFRE की यह रिपोर्ट स्पष्ट संकेत देती है कि योजनाबद्ध प्रयासों से हमारे जंगल “कार्बन सिंक” के रूप में और मजबूत हो सकते हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के परिणाम दिखाते हैं कि यदि सरकार, वैज्ञानिक और स्थानीय समुदाय मिलकर काम करें तो जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करना संभव है।
इन वनों ने यह साबित कर दिया है कि हर पेड़, हर पत्ता और हर इंच मिट्टी हमारी धरती को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
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