सीधी (मध्य प्रदेश )
मध्य प्रदेश वन विभाग और भारतीय वन्य-जीव संस्थान, देहरादून ने 20-21 नवंबर, 2025 को संजय टाइगर रिजर्व, सीधी में जंगली हाथी एवं गौर के संरक्षण और प्रबंधन पर एक राष्ट्रीय स्तर की दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया।
इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य राज्य में बड़े शाकाहारी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए बेहतर और अधिक प्रभावी कार्य-योजनाएँ तैयार करना था, जिसमें देश भर के विशेषज्ञ, वन अधिकारी और शोधकर्ता शामिल हुए।
गौर और हाथी संरक्षण पर दिया गया विशेष महत्व
इस आयोजन में मध्य प्रदेश के विभिन्न टाइगर रिजर्व, जैसे कान्हा, पेंच, पन्ना, सतपुड़ा, संजय-दुबरी और बांधवगढ़ के साथ-साथ अन्य राज्यों के गौर और हाथी संरक्षण विशेषज्ञों ने भी भाग लिया।
कार्यशाला में गौर पुनर्स्थापना कार्यक्रम की सफलता पर विशेष चर्चा की गई। संजय टाइगर रिजर्व से वर्ष 1995 में विलुप्त हो चुकी गौर प्रजाति को वापस लाने के लिए 2023 में एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसके तहत कान्हा और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से कुल 50 गौर लाए गए थे। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, वर्तमान में गौर की संख्या बढ़कर 62 हो गई है, जो इस संरक्षण पहल की एक बड़ी सफलता है।
हाथियों के संरक्षण और प्रबंधन पर किया गया ध्यान केंद्रित
कार्यशाला में जंगली हाथियों की बढ़ती संख्या और उनके प्रबंधन पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। वर्तमान में, संजय टाइगर रिजर्व क्षेत्र में 12 जंगली हाथी विचरण कर रहे हैं, और समय-समय पर छत्तीसगढ़ एवं बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से भी हाथियों का आवागमन होता रहता है। मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ के अलावा संजय टाइगर रिजर्व ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहाँ गौर और जंगली हाथी दोनों की स्थायी उपस्थिति दर्ज की गई है।
कार्यशाला में मानव-वन्यप्राणी संघर्ष को कम करने, अवैध शिकार को रोकने और वन्यजीव प्रबंधन में आधुनिक तकनीकों, जैसे कॉलर आईडी ट्रैकिंग का उपयोग करने पर गहन विचार-विमर्श हुआ। विशेषज्ञों ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों को मजबूत करने और भविष्य की रणनीतियों पर मंथन किया।
वन्यजीव संरक्षण है हमारी जिम्मेदारी
कार्यशाला में आंध्र प्रदेश के नागार्जुन सागर शैलम टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक और उप-संचालक, भारतीय वन्य-जीव संस्थान के वैज्ञानिक और विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव साझा किए।
इस तरह के राष्ट्रीय स्तर के आयोजन, वन्यजीव संरक्षण के सामने आने वाली जटिलताओं को समझने और उनसे निपटने के लिए एक व्यापक और एकीकृत दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करते हैं, जिससे मध्य प्रदेश के वन्यजीव आवासों का भविष्य सुरक्षित किया जा सके।
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