हरे समुद्री कछुए अब विलुप्त होने के खतरे से हुए बाहर

हरे समुद्री कछुए जो एक समय पर विलुप्त होने की कगार पर आ गए थे, उनके अस्तित्व को विभिन्न संरक्षण प्रयासो की मदद से खत्म होने से बचा लिया गया, जोकि दुनिया भर के संरक्षणवादियों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने हाल ही में जारी अपनी रेड लिस्ट में हरे समुद्री कछुए (Chelonia mydas) को ‘लुप्तप्राय’ श्रेणी से हटाकर ‘कम चिंतनीय’ श्रेणी में डाल दिया है। दशकों से चल रहे इन संरक्षण प्रयासों का सकारात्मक परिणाम हमे यह सिखाता है कि कैसे एक विलुप्त होने के कगार पर पहुँच चुकी प्रजाति को अथक प्रयासो से वापस लाया जा सकता हैं।

अपने अवैध शिकार की वजह से विलुप्त होने की कगार पर थी यह प्रजाति

अपने अवैध शिकार और गलती से मछुआरो की जाल मे फंसने के कारण एक समय पर यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर आ गए थे। इनके मांस, अंडे और सजावटी खोल के लिए बड़े पैमाने पर इनका शिकार होता था जिसकी वजह इनकी आबादी में भारी गिरावट दर्ज की गई थी। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन, आवासो का नुकसान और बाढ़ जैसी प्राकृतिक समस्याओ के कारण भी इनकी संख्या मे कमी देखी जा रही थी। वही अक्सर मछुआरों द्वारा लगाए गए मछली पकड़ने वाले जाल मे भी फंसने से इनकी मौत हो जाती थी जिसकी वजह से इनकी संख्या मे कमी हो जाती थी।

दशकों के संरक्षण प्रयासो का आया सकारात्मक परिणाम

यह नतीजा कोई एक रात का करिश्मा नहीं है, बल्कि पचास से अधिक वर्षों से चल रहे वैश्विक संरक्षण प्रयासों का सकारात्मक परिणाम है। एक समय पर इस समुद्री जीव पर विलुप्ति का गंभीर खतरा मंडरा रहा था, लेकिन दशकों के संरक्षण के प्रयासों की वजह से इनके अस्तित्व को खोने से बचा लिया गया।

इस सकारात्मक परिणाम पर यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के प्रोफेसर ब्रेंडन गोडले ने इस प्रगति पर टिप्पणी करते हुए कहा, “समुद्री कछुए एक प्रतिष्ठित प्रजाति हैं जो लोगों को प्रेरित करती हैं।” उन्होंने आगे कहा कि “लाखों लोगों ने इनकी सुरक्षा के लिए अथक प्रयास किया है और यह रंग ला रहा है।”

भारत में भी चल रहे हैं संरक्षण के प्रयास

इनके सफलता की इस कहानी में भारत भी पीछे नहीं है। देश में कई राज्यों में कछुआ संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण पहल की जा रही है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के तहत कछुआ अभयारण्य और पुनर्वास केंद्र स्थापित किए गए हैं। वाराणसी का सारनाथ कछुआ प्रजनन और पुनर्वास केंद्र इसी का एक हिस्सा है, जिसने हजारों कछुओं का संरक्षण कर गंगा नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद की है। हालांकि, भारत में मुख्य रूप से ताजे पानी के कछुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है, लेकिन समुद्री कछुओं के लिए भी तटीय राज्यों में काम जारी है।

सतर्कता अब भी जरूरी

हरे कछुओं की वापसी प्रकृति की सहनशीलता का एक अद्भुत उदाहरण है और यह दिखाता है कि जब हम मिलकर प्रयास करते हैं, तो सकारात्मक बदलाव संभव है। लेकिन इस सफलता के बावजूद भी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हमें अभी भी सतर्क रहना होगा। हरे कछुओं की आबादी अभी भी अपने ऐतिहासिक स्तर से काफी कम है। अगर हमे हरे कछुओं की आबादी को सामान्य करना है तो इनके संरक्षण के लिए चल रहे विभिन्न प्रयासों को जारी रखना जरूरी है।

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The Forest Times
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