मणिपुर
मणिपुर के काकचिंग जिले के सोरा हिल की तलहटी पर सोमवार को तीन स्थानीय लोगों द्वारा एक अजगर को देखा गया, जिसे प्राथमिक उपचार देने के बाद वन विभाग ने सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया। पीपुल्स फॉर एनिमल्स (पीएफए) मणिपुर के प्रबंध न्यासी ने ग्रामीणों के इस सराहनीय काम की प्रशंसा की, और लोगो से वन्यजीव संरक्षण मे अपना अहम योगदान देने की अपील की।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची 1 के अंतर्गत सूचीबद्ध है मिला अजगर
मिली जानकरी के अनुसार सोमवार शाम लगभग 6:30 पर सोरा हिल वांगमा पर टहलते हुए तीन स्थानीय लोगों (मोहम्मद कमलहासन, मोहम्मद इंतियास और सुहेब अख्तर) ने एक अजगर को कमजोर और गतिहीन स्थिति मे देखा। उन्होने तुरंत इसकी सूचना मणिपुर के पीएफए स्वयंसेवकों को दी। मौके पर पहुँचकर पीएफए स्वयंसेवकों ने अजगर को अपने कब्जे मे लेकर उसे प्राथमिक उपचार दिया और रात भर आश्रय दिया।
वन प्रभाग के वन संरक्षक डॉ. एल. जेसीली के मार्गदर्शन में, काकचिंग रेंज के वन अधिकारी एच. सुंदर सिंह और उनकी टीम ने बचाव अभियान चलाया। सुबह होने पर उसे पुनर्जलीकरण और पुनर्जीवन के लिए उसे लुसाई पाट (लोकतक झील की एक सहयोगी झील) में छोड़ दिया गया।

ठंड के मौसम में गतिहीन हो जाते है अजगर
पीपुल्स फॉर एनिमल्स (पीएफए) मणिपुर के प्रबंध न्यासी, लौरेम्बम बिस्वजीत मैतेई ने कहा कि अजगर कुछ स्तनधारियों की तरह शीतनिद्रा में नहीं रहते, बल्कि ठंड के मौसम में ब्रूमेशन नामक अवस्था में चले जाते हैं। ब्रूमेशन एक प्रकार की निष्क्रियता है जिसमें तापमान गिरने और भोजन की कमी होने पर (नवंबर/दिसंबर से अगले वर्ष अप्रैल तक) ऊर्जा संरक्षण के लिए अजगर की गतिविधि और चयापचय काफी धीमा हो जाता है।
इस दौरान अजगर सुस्त या निष्क्रिय हो जाते हैं और अक्सर स्थिर तापमान वाले बिलों या मांदों में आश्रय ढूंढते हैं। ब्रूमेशन की अवधि प्रजातियों और जलवायु के आधार पर भिन्न होती है, लेकिन आमतौर पर ठंडे क्षेत्रों में कुछ हफ्तों से लेकर कई महीनों तक रहती है। उन्होंने आगे कहा कि वास्तविक शीतनिद्रा के विपरीत, अजगर के शरीर का तापमान बहुत अधिक नहीं गिरता; इसके बजाय, यह सर्दियों के महीनों में गर्म मौसम के लौटने तक जीवित रहने के लिए पर्यावरण का उपयोग स्थिर तापमान बनाए रखने के लिए करता है।

वन्यजीव संरक्षण मे दे अपना अहम योगदान
मैतेई ने सोरा के स्थानीय निवासियों को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया और जनता से आग्रह किया कि यदि अजगरों का सामना हो जाए तो उन्हें नुकसान न पहुँचाएँ, क्योंकि उन्हें मारना या पकड़ना कानून के तहत दंडनीय अपराध है।
थौबल पीएफए मणिपुर के स्वयंसेवकों ने भी अजगर को रात भर अपने आश्रय में रखकर उसे पुनर्जलीकरण और पुनर्जीवित करने में मदद की। पूरे बचाव और देखभाल की प्रक्रिया की निगरानी वन संरक्षक (केंद्रीय) आर.के. अमरजीत, आईएफएस, वन कर्मचारियों और पीएफए सदस्यों द्वारा की गई।
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