विलुप्ती की राह पर चल रहे है लायन-टेल्ड मकाक

हाल ही मे इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने लंबी पूंछ वाले मकाक (लायन-टेल्ड मकाक) को अपनी रेड लिस्ट में छठी बार “लुप्तप्राय” श्रेणी में रखा है, जो आने वाले समय मे इसके अस्तित्व के विलुप्त होने को दर्शाती है। आकड़ों के अनुसार पिछले 35 वर्षों में इनकी आबादी में 80% की भारी गिरावट दर्ज की गई है, और अनुमान है कि अगले 40 वर्षों में इसकी संख्या मे 50% की और गिरावट आएगी, जो बेहद चिंतनीय है।

किन कारणो से विलुप्ती की राह पर चल रहे लायन-टेल्ड मकाक

इनके घट रही आबादी के अनेक कारण है-

आवास के नुकसान: एक सर्वे के अनुसार कृषि, शहरीकरण और वनों की कटाई के कारण इसके 99% प्राकृतिक आवास नष्ट हो चुके है। जो इसकी तेजी से घट रही आबादी का मुख्य कारण हैं।

मानव संपर्क: अक्सर मानव इन्हे अपने हाथो से खाने की वस्तुए देते है जिसकी वजह से यह मानव संपर्क मे आते है। इन मानवीय गतिविधियों के कारण इन्हे अनेक तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

सड़क मार्ग दुर्घटनाएं: कई बार मकाक सड़क पार करते समय तेज रफ्तार गाडियो का शिकार हो जाते है जिनमे उनकी मृत्यु हो जाती है।

अवैध शिकार: शिकारी कई वजहो से इनका अवैध शिकार करते है यह भी इनकी घट रही आबादी का एक कारण है।

अपनी पूंछ के लिए जाने जाते है लायन-टेल्ड मकाक

लायन-टेल्ड मकाक जिसे सिंह-पूंछ मकाक और वांडरू नाम से भी जाना जाता है। भारत मे ये दक्षिण भारत के पश्चिमी घाटों मे पाए जाते है। ये मुख्य रूप से नीलगिरि मे देखने को मिलते है। लायन-टेल्ड मकाक काले फर से ढके होते हैं, और उनके चेहरे के चारों ओर एक आकर्षक ग्रे या सिल्वर अयाल होता है जो नर-मादा दोनों में पाया जा सकता है। उनका नाम इनके अयाल के लिए नहीं, बल्कि उनकी पूंछ के लिए रखा गया है, जो लंबी, पतली और नंगी होती है, जिसकी नोक पर शेर जैसी, काली पूंछ होती है। इनकी पूंछ का आकार लंबाई में लगभग 25 सेमी तक होता है।

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The Forest Times
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