काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में मछली, मेंढक और सरीसृपों पर जारी की गई सर्वेक्षण रिपोर्ट

गुवाहाटी (असम)

हाल ही में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में मछलियों, मेंढकों और सरीसृपों की समृद्ध जैव विविधता पर की गई एक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की गई। नवंबर 2025 में जारी इस रिपोर्ट से पता चलता है कि असम का काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान केवल अपने एक-सींग वाले गैंडों के लिए ही प्रसिद्ध नही है, बल्कि अपनी विविध जलीय और उभयचर प्रजातियों के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पार्क के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर किया गया है सर्वेक्षण

यह सर्वेक्षण काजीरंगा पार्क प्राधिकरण द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के सहयोग से जुलाई और सितंबर 2025 के बीच किया गया था। इस अध्ययन का उद्देश्य पार्क के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और उभयचरों व सरीसृपों की प्रजातियों पर गहन अध्ययन करना था, जो पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के प्रमुख संकेतक माने जाते हैं।

मछलियों पर क्या रहा निष्कर्ष

सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, काजीरंगा के आर्द्रभूमि पर मीठे पानी की मछलियों की 77 प्रजातियों पाई जाती है। यह संख्या असम में पाई जाने वाली कुल 216 देशी मछली प्रजातियों का एक बड़ा हिस्सा है, जो पूर्वोत्तर क्षेत्र की कुल 422 प्रजातियों में महत्वपूर्ण योगदान देती है। रिपोर्ट में संरक्षण संबंधी चिंताओं वाली कई प्रजातियों की उपस्थिति भी दर्ज की गई, जिनमें संकटग्रस्त श्रेणी मे ‘क्लाउन मैगुर’ और कमजोर श्रेणी मे ‘वल्लागो अट्टू’ शामिल हैं। मछलियों की यह समृद्ध विविधता ऊदबिलाव, मछली पकड़ने वाली बिल्लियों और जलपक्षियों जैसी अन्य प्रजातियों के लिए भोजन जाल और पोषण चक्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

मेंढक और सरीसृप पर क्या रहा निष्कर्ष

सर्वेक्षण में मेंढक और सरीसृपों की कुल 108 प्रजातियों को भी दर्ज किया गया। यह आंकड़ा पूर्वोत्तर भारत में मौजूद 274 से अधिक उभयचर और सरीसृप प्रजातियों का लगभग 40% है। अध्ययन के दौरान 17 उभयचर और 14 सरीसृप प्रजातियों सहित 31 हर्पेटोफौना (उभयचर और सरीसृप) प्रजातियों को विशेष रूप से रिकॉर्ड किया गया।

इन प्रजातियों में किंग कोबरा , असम रूफ्ड कछुआ, और एशियाई भूरा कछुआ जैसी लुप्तप्राय और खतरे वाली प्रजातियां शामिल हैं। एक उल्लेखनीय खोज में पहली बार पैर-रहित उभयचर ‘धारीदार सिसिलियन’ की उपस्थिति दर्ज की गई। इसके अलावा ‘काजीरंगा बेंट-टोड जेको’ जो केवल काजीरंगा में ही पाया जाता है की डेटा-कमी वाली प्रजाति भी मिली।

क्या है इसका पारिस्थितिक महत्व

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की निदेशक सोनाली घोष ने बताया कि मछलियों और हर्पेटोफौना की यह समृद्ध प्रजाति विविधता दर्शाती है कि पार्क वन्यजीवों के लिए एक प्राचीन और अबाधित निवास स्थान प्रदान करता है। उभयचरों और सरीसृपों की विविधता पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के प्रमुख संकेतकों के रूप में कार्य करती है।

इन अध्ययनों ने जलवायु परिवर्तन, गाद जमाव और अनियमित मछली पकड़ने जैसी चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला है, जिनके लिए दीर्घकालिक निगरानी और मजबूत संरक्षण उपायों की आवश्यकता है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और पर्यावरण मंत्री चंद्र मोहन पटवारी ने इन निष्कर्षों को सरकार के निरंतर संरक्षण प्रयासों की सफलता बताया।

यह सर्वेक्षण रिपोर्ट काजीरंगा के अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र की गहरी समझ की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो इस यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के व्यापक प्रबंधन और सुरक्षा के प्रयासों को मजबूत करेगा।

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The Forest Times
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