मानव-वन्यजीव संघर्ष को ‘प्राकृतिक आपदा’ के रूप में वर्गीकृत करे सभी राज्य- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को एक ऐतिहासिक आदेश जारी किया। इस आदेश मे कोर्ट ने सभी राज्यों को मानव-वन्यजीव संघर्ष को एक ‘प्राकृतिक आपदा’ के रूप में वर्गीकृत करने का निर्देश दिया। इस महत्वपूर्ण फैसले का उद्देश्य पीड़ितों को जल्द से जल्द सहायता राशि और मुफ्त इलाज सुनिश्चित करना है।

क्यो बढ़ रहे दिनों-पर-दिन मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले

भारत के हर हिस्से मे प्रतिदिन कई तरह के मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले देखने को मिलते है, जोकि एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। इससे न ही केवल इंसानो को परेशानी होती है, साथ ही जानवरों को भी हानि होती है। सरकार इसको कम करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाती है, पर फिर भी इसके मामलें कम नही हो रहे।

वनों की कटाई, वन भूमि पर मानव आवासों का अतिक्रमण, जलवायु परिवर्तन, औद्योगिकी जैसे मानवीय कारण इस संघर्ष को और बढ़ा रहे हैं। प्रकृतिक आवास की कमी के कारण वन्यजीव भोजन-पानी की तलाश मे मानव बस्तियों मे आ जाते है, जो मानव-वन्यजीव टकराव का मुख्य कारण है।

अपनी जान-माल के बचाव मे इंसान उनपर हमला करते है, और कमी-कभार वन्यजीव भी अपने बचाव मे इंसानों पर हमला कर देते, जिससे दुर्घटना के मामले सामने आते है। इस टकराव से न केवल वन्यजीवों को परेशानी का सामना करना पड़ता है, बल्कि मानव जीवन, कृषि और आजीविका पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का राज्यों को निर्देश

●’प्राकृतिक आपदा’ का दर्जा: कोर्ट ने सभी राज्यों को मानव-वन्यजीव संघर्ष को एक प्राकृतिक आपदा के रूप में वर्गीकृत करने का आदेश दिया। जिसकी मदद से पीड़ितो को धनराशि का शीघ्र वितरण, आपदा प्रबंधन संसाधनों तक तत्काल पहुंच और स्पष्ट प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।

मुआवजा राशि: कोर्ट ने यह भी अनिवार्य किया कि ऐसी घटनाओं में होने वाली प्रत्येक मानव मृत्यु के लिए प्रभावित परिवारों को 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि दी जाए। यह राशि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एकीकृत वन्यजीव आवासों के विकास योजना के तहत निर्धारित की गई है।

मॉडल दिशानिर्देश: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को छह महीने के भीतर मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन पर मॉडल दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया है। राज्यों को इन दिशानिर्देशों को अगले छह महीनों में लागू करना होगा।

मौजूदा स्थिति: कोर्ट ने यह भी जानकारी दी कि उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों ने पहले ही मानव-वन्यजीव संघर्ष को प्राकृतिक आपदा के रूप में अधिसूचित कर दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सितंबर 2025 में ही इसे एक आपदा घोषित किया था और पीड़ितों के लिए ₹5 लाख की सहायता की घोषणा की थी।

क्या है फैसले का महत्व

यह ऐतिहासिक फैसला वन्यजीव संरक्षण नीतियों में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। तत्काल वित्तीय सहायता और बेहतर प्रबंधन दिशानिर्देशों से प्रभावित समुदायों का विश्वास बनाए रखने और उन्हें संरक्षण प्रयासों में शामिल करने में मदद मिलेगी। यह आदेश देश भर में वन प्रबंधन, टाइगर रिजर्व संचालन और संघर्ष समाधान के लिए नई दिशाएं तय करता है। इस कदम से उम्मीद है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष के पीड़ितों को सरकारी सहायता के दायरे में लाया जा सकेगा और प्रभावी कदम उठाए जा सकेंगे।

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The Forest Times
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