नई दिल्ली
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हाल ही में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिसके तहत ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ और ‘प्रोजेक्ट एलिफेंट’ के लिए वित्तीय वर्ष 2025-26 हेतु महत्वपूर्ण आवंटन जारी किए गए हैं। इन प्रमुख योजनाओं को अब ‘वन्यजीव आवासों के एकीकृत विकास’ की एक छत्र योजना में मिला दिया गया है, जिसका उद्देश्य संसाधन आवंटन में सुधार करना और संरक्षण गतिविधियों को सुव्यवस्थित करना है।
मुख्य आवंटन और वित्तीय रुझान
वित्त वर्ष 2025-26 के लिए प्रशासनिक मंजूरी: मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष के लिए प्रोजेक्ट टाइगर और एलिफेंट डिवीजन को ₹45.97 करोड़ की प्रशासनिक मंजूरी दी है। इसमें से असम जैसे राज्यों को विशिष्ट परियोजनाओं के लिए ₹20.67 करोड़ जारी किए गए हैं।
समग्र बजट वृद्धि: वित्त वर्ष 2025-26 में वन्यजीव आवासों के एकीकृत विकास योजना को ₹450 करोड़ का आवंटन प्राप्त हुआ, जो पिछले वर्ष के संशोधित अनुमानों की तुलना में 12.5% की वृद्धि है।
सतर्कता की आवश्यकता: हालांकि बजट में वृद्धि हुई है, लेकिन पिछले तीन वर्षों से संशोधित अनुमान चरण में आवंटन में कमी देखी गई थी, जिससे संरक्षण विशेषज्ञों ने धन के समय पर और पूर्ण उपयोग पर सावधानी बरतने का आह्वान किया है।
विलय का उद्देश्य और प्रभाव
2023 में, सरकार ने इन दोनों प्रतिष्ठित परियोजनाओं को एक ही योजना में मिला दिया। इस कदम का उद्देश्य प्रशासनिक दक्षता बढ़ाना और धन के बंटवारे में स्पष्टता लाना था। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि इस विलय से दोनों प्रजातियों की विशिष्ट संरक्षण चुनौतियों पर आवश्यक व्यक्तिगत ध्यान प्रभावित हो सकता है।
प्रोजेक्ट टाइगर: एक सफलता की कहानी
1973 में शुरू किया गया प्रोजेक्ट टाइगर, बाघों की आबादी को बढ़ाने और उनके प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका है। मार्च 2025 तक, इस परियोजना के तहत 58 संरक्षित क्षेत्रों को बाघ अभयारण्य के रूप में नामित किया गया है। 2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 3,682 जंगली बाघ थे, जो वैश्विक आबादी का लगभग 75% है, जो इस परियोजना की सफलता को दर्शाता है।
प्रोजेक्ट एलिफेंट: चुनौतियाँ बरकरार
1992 में शुरू की गई प्रोजेक्ट एलिफेंट का उद्देश्य हाथियों, उनके आवासों और गलियारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, मानव-पशु संघर्ष के मुद्दों का समाधान करना और बंदी हाथियों का कल्याण करना है। हाल ही में, 2025 की डीएनए-आधारित हाथी जनगणना रिपोर्ट में हाथियों की संख्या में लगभग 18% की राष्ट्रीय स्तर पर गिरावट देखी गई है, जो इस परियोजना के लिए निरंतर और प्रभावी वित्त पोषण की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
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