एक फॉरेस्ट गार्ड की सूझबूझ ने 10 खूंखार नक्सलियों को कराया सरेंडर

बालाघाट (मध्य प्रदेश)

मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले में नक्सलवाद के खिलाफ एक बड़ी सफलता मिली है, जहां एक फॉरेस्ट गार्ड की अनूठी पहल के बाद 10 खूंखार नक्सलियों ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस समूह में 62 लाख रुपये का इनामी डिविजनल कमांडर सुरेंद्र उर्फ कबीर भी शामिल है। इस ऐतिहासिक आत्मसमर्पण को राज्य में नक्सलवाद के खात्मे की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

कैसे संभव हुआ यह ऐतिहासिक सरेंडर?

यह बड़ी सफलता हॉक फोर्स के खुफिया विभाग में कार्यरत वन रक्षक गुलाब उइके की मध्यस्थता से संभव हुई। सूत्रों के अनुसार, नक्सलियों ने खुद वनकर्मी गुलाब उइके से संपर्क किया और मुख्यधारा में वापस लौटने की इच्छा जताई।

गुलाब उइके ने बताया कि पहले भी उनका नक्सलियों से दो-तीन बार संपर्क हुआ था, तब वे सिर्फ राशन ले जाया करते थे। इस बार, उन्होंने सरेंडर करने को लेकर मदद मांगी। वन रक्षक ने बिना किसी शर्त या ऑफर के उनकी बात सुनी और उन्हें अधिकारियों से मिलाने के लिए तैयार हो गए।

शनिवार रात गुलाब उइके इन 10 नक्सलियों को एक बोलेरो वाहन में बालाघाट रेंज के आईजी संजय सिंह के बंगले लेकर पहुंचे। वहां से उन्हें पुलिस लाइन ले जाया गया और पूछताछ के बाद, रविवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की उपस्थिति में औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण करवाया गया।

कौन थे ये 10 नक्सली?

आत्मसमर्पण करने वाले 10 नक्सलियों के समूह में 6 पुरुष और 4 महिलाएं शामिल हैं। ये सभी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में सक्रिय थे और इन पर कुल मिलाकर 2 करोड़ 36 लाख रुपये का इनाम घोषित था।समूह का सबसे प्रमुख सदस्य 62 लाख रुपये का इनामी हार्डकोर नक्सली कमांडर सुरेंद्र उर्फ कबीर था, जो एमएमसी (महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़) जोन की केबी डिवीजन का लीडर था। कबीर पिछले 35 वर्षों से इस इलाके में सक्रिय था।

मुख्यमंत्री के सामने डाले हथियार

बालाघाट में आयोजित ‘पुनर्वास से पुनर्जीवन’ कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इन नक्सलियों के आत्मसमर्पण को स्वीकार किया। मुख्यमंत्री ने उन्हें हथियार के बदले भारत के संविधान की एक प्रति भेंट की, शांतिपूर्ण जीवन जीने और देश की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

डॉ. यादव ने इस सफलता के लिए पुलिस और हॉक फोर्स के प्रयासों की सराहना की और कहा कि सुरक्षा बलों के दबाव और राज्य की नई नक्सली आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति 2023 के कारण यह संभव हो सका है

नक्सलवाद के ताबूत में आखिरी कील

इस सामूहिक आत्मसमर्पण को मध्य प्रदेश के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी नक्सल विरोधी सफलता माना जा रहा है। पुलिस अधिकारियों का मानना है कि इस कदम से बालाघाट और आसपास के 35 साल पुराने नक्सल आतंक के कलंक को मिटाने में बड़ी मदद मिलेगी और यह क्षेत्र जल्द ही नक्सलवाद से मुक्त हो जाएगा। सरकार की पुनर्वास नीति इन पूर्व-नक्सलियों को एक नया और गरिमापूर्ण जीवन शुरू करने का अवसर प्रदान करेगी।

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The Forest Times
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