महेन्द्रगढ़(छत्तीसगढ़)
●क्या है ‘महुआ बचाओ अभियान’
महेन्द्रगढ़ वन मंडल ने एक बार फिर ‘महुआ बचाओ अभियान’ को शुरू किया है। महुआ के पेड़ों की घटती संख्या को देखते हुए वन विभाग ने महुआ बचाओ अभियान चलाया है। जिसके तहत परित्यक्त गोठानों में महुआ के पौधे लगाकर हरे-भरे क्षेत्र बनाने और आदिवासी समुदायों के लिए टिकाऊ आजीविका सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार इस पहल से न केवल परित्यक्त गोठानों का पुनर्जनन होगा बल्कि महुआ के पेड़ों की संख्या की भी बढोत्तरी होगी। हालांकि इस अभियान की नीव पिछले साल अगस्त मे ही 30,000 पौधारोपण करके रखी जा चुकी है, जो सफल भी रही थी।
●कैसे इस्तेमाल किए जाएंगे परित्यक्त गोठान
महेन्द्रगढ़ के ग्रामीण इलाकों मे पिछली सरकार के कार्यकाल में बनाए गए हज़ारों गोठान वीरान पड़े हैं। कई खाली पड़े है तो कई अतिक्रमण की चपेट मे आने के कारण उपयोग मे नही है, जिससे उन समुदायों को कोई फ़ायदा नहीं पहुँच रहा जिनके लिए इन्हें बनाया गया था। इस चुनौती से निपटने के लिए मनेंद्रगढ़ वन प्रभाग ने महुआ बचाओ अभियान शुरू किया और इन खाली गोठानो पर महुआ के पौधों को लगाकर हरियाली और उपजाऊ ज़मीन तैयार करने की कोशिश की जा रही है जिससे ग्रामीणों को फायदा हो। महुआ बचाओ अभियान सिर्फ़ गौठानों तक ही सीमित नहीं है। इस योजना के तहत अभी तक 1,12,000 से ज़्यादा पौधे लगाए जा चुके हैं, जिससे ग्रामीणों में उत्साह बढ़ रहा है। यह पहल पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वनीकरण कार्यक्रमों में महुआ को प्राथमिकता मिलेगा।
●महुआ है आदिवासियों के लिए खरा सोना
महुआ का पेड़ बस्तर के आदिवासियों के लिए कल्पवृक्ष माना जाता है। महुआ के पेड़ आदिवासी समुदायों के लिए सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक एक महुआ पेड़ की औसत आयु 60 साल होती और वह 10 साल मे ही फल देना शुरू कर देता है। एक महुआ के परिपक्व पेड़ से एक ग्रामीण परिवार औसतन दो क्विंटल फूल और 50 किलो महुआ का बीज प्राप्त करता है. जिसे बेचकर एक आदिवासी परिवार महुआ के सीजन में करीब 10 हजार रुपये कमा लेता है जो कि आदिवासियों के आय का एक बड़ा स्रोत है। इसके फल, बीज, छाल और पत्तों से दवाएं बनाई जाती हैं तो कुल मिलाकर पेड़ के फल से लेकर पत्ते तक की डिमांड बाजार में होने के कारण महुआ किसी कल्पवृक्ष से कम नहीं है।
●ग्रामीण भी ले रहे अभियान मे बढ़-चढ़ कर हिस्सा
इस अभियान मे ग्रामीणों ने भी अहम भूमिका निभाई है। वे पौधारोपण के साथ-साथ उनकी सही देखभाल और सुरक्षा का कार्य भी सुनिश्चित करेगें। लोगो का मानना है कि महुआ का संरक्षण बहुत ही जरूरी है क्योंकि वर्तमान के ज्यादातर महुआ के पेड़ अब पुराने हो चुके है और उनके फल की पैदावार भी कम हो गई है। इस अभियान के तहत लगाए गए नए पेड़ों की मदद से कई सालों तक उन्हे आजीविका का एक स्रोत मिल जाएगा।
● पर्यावरण को भी मिलेगा बढ़ावा
इस योजना से न केवल क्षेत्र के ग्रामीणों को आजीविका का एक साधन मिलेगा बल्कि पर्यावरण को भी बढ़ावा मिलेगा। अधिक मात्रा मे पेड़ो को लगाने से महुआ के पेड़ो की संख्या मे इजाफा होगा जिससे वहाँ के लोगो को स्वच्छ हवा मिलेगी और साथ ही साथ मिट्टी के बहाव को रोककर बाढ़ से भी बचाव करेगा। इस अभियान से हरित क्रान्ति को भी बढ़ावा मिलेगा साथ ही साथ पेड़ो का भी संरक्षण होगा।
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