ओंकारेश्वर बनेगा नया टाइगर रिज़र्व: 40 साल बाद अधूरी कहानी पूरी

इतिहास और संदर्भ

मध्यप्रदेश, जिसे देश की “टाइगर कैपिटल” कहा जाता है, एक बार फिर से भारत के बाघ मानचित्र में नया आयाम जोड़ने जा रहा है। राज्य सरकार अब ओंकारेश्वर अभयारण्य को आधिकारिक रूप से 11वाँ टाइगर रिज़र्व घोषित करने की प्रक्रिया में है। लगभग 614 वर्ग किलोमीटर में फैला यह क्षेत्र, चार दशकों से अधूरी पड़ी उस प्रतिज्ञा को पूरा करेगा, जो इंदिरा सागर परियोजना के दौरान की गई थी।

1980 के दशक में जब इंदिरा सागर डैम परियोजना के लिए बड़ी मात्रा में जंगल काटे गए थे, तब उनके बदले कुछ हिस्सों को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने का वादा किया गया था। लेकिन यह घोषणा लंबे समय तक अधूरी पड़ी रही। अब सरकार इस वादे को हकीकत में बदलने जा रही है।

इस घोषणा का महत्व केवल ‘काग़ज़ पर अधिसूचना’ भर नहीं है। यह कदम बाघों के भविष्य के लिए एक सुरक्षित कॉरिडोर तैयार करेगा। आज मध्यप्रदेश में 800 से अधिक बाघ हैं और कई मौजूदा टाइगर रिज़र्व जैसे कान्हा, पेंच, बांधवगढ़ और सतपुड़ा अपने वहन-क्षमता की सीमा तक पहुँच चुके हैं। ऐसे में ओंकारेश्वर जैसे नए संरक्षित क्षेत्र का निर्माण बेहद आवश्यक हो गया है।

अभयारण्य की खासियत और तैयारियाँ

ओंकारेश्वर अभयारण्य पहले से ही बाघों, तेंदुओं और कई दुर्लभ प्रजातियों का घर है। अनुमान है कि यहाँ लगभग 50 बाघ पहले से ही विचरण कर रहे हैं। इस कारण, इसे टाइगर रिज़र्व का दर्जा मिलने पर तुरंत असर दिखेगा—बाघों का संरक्षण सुदृढ़ होगा और उनका प्रवास सुरक्षित रहेगा।

यह इलाका भौगोलिक दृष्टि से भी विशेष है। नर्मदा नदी की हरियाली, सतपुड़ा और विंध्याचल की श्रृंखलाएँ, और समीपवर्ती जलाशय इसे प्राकृतिक रूप से समृद्ध बनाते हैं। यहाँ पहले से ही वन विभाग के पास मजबूत आधारभूत ढाँचा है—73 वन भवन, 12 निरीक्षण टावर, 62 बीट गार्ड, 18 रेंज असिस्टेंट और अन्य अधिकारी तैनात हैं। इसका अर्थ है कि इस रिज़र्व को चलाने के लिए नयी व्यवस्थाएँ खड़ी करने की बहुत कम ज़रूरत पड़ेगी।

सांस्कृतिक दृष्टि से भी ओंकारेश्वर क्षेत्र की अहमियत है। यहीं स्थित है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, नज़दीक है महेश्वर किला और कुछ दूरी पर उज्जैन का महाकाल मंदिर। यह पवित्र और ऐतिहासिक धरोहरें, टाइगर रिज़र्व बनने के बाद धार्मिक पर्यटन और पारिस्थितिक पर्यटन का अनूठा संगम प्रस्तुत कर सकती हैं। स्थानीय ग्राम सभाओं और पंचायतों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। राज्य वन्यजीव बोर्ड से मंजूरी मिल चुकी है और केवल नर्मदा वैली डेवलपमेंट अथॉरिटी (NVDA) की अंतिम प्रतिक्रिया का इंतज़ार है।

पर्यटन, समाज और भविष्य की चुनौतियाँ

टाइगर रिज़र्व बनने के बाद ओंकारेश्वर न केवल बाघों का नया सुरक्षित घर बनेगा बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी अवसर लेकर आएगा। धार्मिक श्रद्धालुओं के साथ आने वाले पर्यटक अब जंगल सफारी और इको-टूरिज़्म का अनुभव भी ले पाएँगे। इससे स्थानीय युवाओं के लिए रोज़गार के नए रास्ते खुलेंगे—गाइड, होटल, होम-स्टे, और हस्तशिल्प बिक्री जैसी गतिविधियों से उनकी आय बढ़ेगी।

हालाँकि, यह भी उतना ही सच है कि पर्यटन अगर अनियंत्रित हुआ तो यह पर्यावरणीय दबाव पैदा कर सकता है। बाघों के सुरक्षित आवागमन को बाधित करने वाले निर्माण, भीड़भाड़ और प्रदूषण जैसी समस्याएँ भी उभर सकती हैं। इसलिए विशेषज्ञ मानते हैं कि यहाँ नियंत्रित और संतुलित पर्यटन नीति अपनाना अनिवार्य होगा।

ओंकारेश्वर परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जलाशयों को संरक्षित क्षेत्र से बाहर रखा जाएगा। इससे स्थानीय मछुआरे समुदाय की आजीविका प्रभावित नहीं होगी। यह सामाजिक संतुलन और संरक्षण के बीच तालमेल की अनोखी मिसाल है।

भविष्य की सबसे अहम चुनौती यही होगी कि राज्य न केवल इस नये रिज़र्व को अधिसूचित करे बल्कि उसके बाद वैज्ञानिक प्रबंधन, मानव-बाघ संघर्ष समाधान, और सामुदायिक भागीदारी को भी मजबूत करे। अगर यह सब सफल हुआ तो मध्यप्रदेश बाघ संरक्षण के क्षेत्र में पूरी दुनिया के लिए मिसाल पेश करेगा।

निष्कर्ष

ओंकारेश्वर टाइगर रिज़र्व का गठन केवल वन्यजीव संरक्षण की दिशा में उठाया गया एक कदम नहीं है, बल्कि यह पर्यावरणीय न्याय और ऐतिहासिक वादों की पूर्ति का प्रतीक भी है। चार दशकों से लंबित पड़ी इस योजना का साकार होना दर्शाता है कि पर्यावरणीय नीतियाँ भले धीमी गति से आगे बढ़ें, लेकिन जब वे अमल में आती हैं तो पीढ़ियों तक असर छोड़ती हैं।

इस रिज़र्व से तीन स्तरों पर परिवर्तन देखने को मिलेंगे—

प्राकृतिक स्तर पर: बाघों के लिए सुरक्षित घर, बेहतर शिकार शृंखला, और मध्य भारत के रिज़र्वों के बीच सुरक्षित कॉरिडोर। इससे न केवल बाघों की संख्या टिकाऊ होगी बल्कि जैव विविधता भी फल-फूलेगी।

सामाजिक स्तर पर: स्थानीय समुदायों को पर्यटन, गाइडिंग, हस्तशिल्प और इको-टूरिज़्म से रोज़गार मिलेगा। यह परियोजना इस बात का उदाहरण होगी कि जब संरक्षण और समाज हाथ में हाथ डालकर आगे बढ़ते हैं तो विकास भी संभव है और प्रकृति भी सुरक्षित रहती है।

सांस्कृतिक स्तर पर: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और आसपास के धार्मिक स्थल इस क्षेत्र को आध्यात्मिक महत्व देते हैं। जब धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन साथ मिलेंगे तो यहाँ आने वाला हर यात्री केवल आस्था का नहीं, बल्कि पर्यावरण का भी अनुभव लेकर जाएगा।

भविष्य में सबसे बड़ी चुनौती होगी—संतुलन बनाए रखना। बाघों की रक्षा, जंगलों की शांति और पर्यटकों की आवाजाही को नियंत्रित करना आसान काम नहीं है। इसके लिए राज्य सरकार को वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सख़्त नीतियाँ और स्थानीय लोगों की भागीदारी पर भरोसा करना होगा।

अगर यह सब सही दिशा में हुआ तो ओंकारेश्वर न केवल मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए एक “लैंडमार्क प्रोजेक्ट” बन सकता है। यह बताएगा कि विकास और संरक्षण परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।

आख़िरकार, जब बाघ सुरक्षित होंगे, जंगल सुरक्षित होंगे; जब जंगल सुरक्षित होंगे तो नदियाँ और जलस्रोत भी सुरक्षित रहेंगे; और जब जलस्रोत सुरक्षित रहेंगे तो मानव सभ्यता भी सुरक्षित रहेगी। ओंकारेश्वर टाइगर रिज़र्व इसी गहरे सत्य का प्रतीक बनने जा रहा है।

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The Forest Times
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