अवैध बालू खनन: भिंड की राजनीति और नदियों की पुकार

मध्यप्रदेश, जिसे “नदियों का प्रदेश” कहा जाता है, यहां की नर्मदा, चम्बल, सिंध, सोन जैसी नदियाँ राज्य की जीवनरेखा हैं। इन नदियों से न केवल पीने और सिंचाई का पानी मिलता है बल्कि जैव विविधता, मत्स्य पालन और पर्यटन पर भी इनका गहरा असर है। लेकिन पिछले दो दशकों से इन नदियों पर अवैध बालू खनन (illegal sand mining) एक बड़ी समस्या बनकर खड़ा है। बालू खनन माफिया न केवल नदियों का दोहन कर रहे हैं बल्कि प्रशासनिक तंत्र और राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते यह गतिविधि अक्सर वैध के रूप में ढकी जाती है। भिंड में BJP विधायक और कलेक्टर के बीच हुआ हालिया टकराव इस पूरे संकट का प्रतीक बन गया है।

घटनाक्रम: भिंड में राजनीतिक टकराव

अगस्त 2025 में भिंड जिले के BJP विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह और कलेक्टर संजय श्रीवास्तव के बीच सार्वजनिक विवाद हुआ।

■विधायक ने कलेक्टर पर बालू खनन माफिया से सांठगांठ के आरोप लगाए।

■कलेक्टर ने पलटवार करते हुए विधायक को ही माफिया का संरक्षक बताया।

■मामला इतना बढ़ा कि सभाओं में दोनों ने एक-दूसरे को “चोर” और “गुनहगार” कह डाला।

इसके बाद स्थिति जनभावनाओं से जुड़ गई:

■राजपूत समाज ने कलेक्टर का तलवारों से सम्मान किया।

■वहीं विधायक समर्थकों ने भी अपना शक्ति प्रदर्शन किया।

इससे साफ है कि अवैध खनन का मुद्दा राजनीतिक और जातीय गोलबंदी का रूप ले चुका है।

पर्यावरणीय असर

अवैध खनन से प्रभावित मुख्य नदियाँ:

●नर्मदा नदी – घाटों पर मशीनों से बालू उत्खनन, प्रवाह की गति बदल रही है।

●चम्बल नदी – मगरमच्छ, घड़ियाल और डॉल्फिन जैसे जीव संकट में।

●सोन नदी – सोन घड़ियाल अभयारण्य को भारी खतरा।

●सिंध नदी – तट कटाव और जल स्तर में गिरावट।

प्रमुख प्रभाव:

नदी तट का क्षरण – मशीनों से उत्खनन के कारण किनारे धंस रहे हैं।

भूजल स्तर में गिरावट –

●रेत जलसंचय (aquifer recharge) की प्राकृतिक प्रक्रिया रोकती है।

●जैव विविधता संकट – मछलियों, घड़ियाल और पक्षियों की प्रजातियाँ प्रभावित।

●कृषि पर असर – सिंचाई के लिए नदियों की क्षमता कम हो रही है।

●गांव-समुदाय की आजीविका – मत्स्य पालन और नदी आधारित आजीविका संकट में।

राजनीति और प्रशासन की भूमिका

●कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि स्थानीय नेताओं, अधिकारियों और माफियाओं के बीच “गठजोड़” है।

●चुनावी चंदे, अवैध आमदनी और ठेकेदार नेटवर्क के चलते बालू खनन राजनीतिक संरक्षण पाता है।

●नियमों का पालन सिर्फ कागज़ पर दिखता है।

भिंड की घटना ने साफ कर दिया कि जब भी कोई अफसर कार्रवाई करने की कोशिश करता है, वह स्थानीय सत्ता से टकरा जाता है।

सामाजिक असर

●ग्रामीण समुदायों में भय और नाराज़गी दोनों है।

●जो लोग बालू खनन का विरोध करते हैं, उन्हें धमकियाँ मिलती हैं।

●वहीं कुछ परिवार बालू खनन में रोज़गार पाते हैं, इसलिए वे इसे मजबूरी मानते हैं।

●जातीय समूहों की गोलबंदी (जैसे कलेक्टर का तलवारों से सम्मान) इस मुद्दे को विकृत सामाजिक संघर्ष बना देती है।

समाधान की राह

●तकनीकी निगरानी

□ड्रोन सर्विलांस, सैटेलाइट इमेजरी और GPS-ट्रैकिंग से अवैध खनन की पहचान।

●कठोर कानूनी कार्रवाई

□माफियाओं के खिलाफ केस दर्ज कर तुरन्त कार्रवाई।

□नेताओं और अधिकारियों पर भी जांच।

●जनसहभागिता

□नदी किनारे ग्राम समितियाँ बनाना।

□व्हिसलब्लोअर सुरक्षा देना।

●वैकल्पिक निर्माण सामग्री

□बालू के विकल्प जैसे M-Sand (manufactured sand), फ्लाई ऐश और पुनर्नवीनीकरण सामग्री को बढ़ावा देना।

●पारदर्शिता और राजनीतिक इच्छाशक्ति

□ठेकों और नीलामियों में खुलापन।

□नेताओं की जवाबदेही तय करना।

निष्कर्ष

भिंड की MLA-कलेक्टर भिड़ंत सिर्फ़ दो व्यक्तियों का झगड़ा नहीं है; यह पूरे मध्यप्रदेश की पर्यावरणीय और राजनीतिक असफलता का प्रतीक है। नदियाँ जो हजारों सालों से जीवन दे रही हैं, आज असुरक्षित और उपेक्षित हैं। अगर समय रहते अवैध खनन पर रोक नहीं लगी, तो यह संकट केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक आपदा में बदल जाएगा।

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The Forest Times
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