पीलीभीत मे पांच दिवसीय कार्यशाला का हुआ शुभारंभ

पीलीभीत (उत्तर प्रदेश)

वन्यजीव संरक्षण को सुदृढ़ बनाने और मानव-वन्यजीव सहअस्तित्व को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पीलीभीत में वन्यजीव संरक्षण हेतु ‘सामुदायिक स्वयंसेवी संवर्गों का सुदृढ़ीकरण कार्यशाला’ का शुभारंभ किया गया। 15 से 19 सितंबर तक भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिए इस पांच दिवसीय कार्यशाला को पीलीभीत टाइगर रिजर्व (PTR) और विश्व प्रकृक्ति निधि, भारत (WWF) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया है। इस कार्यशाला में उत्तर प्रदेश समेत 10 राज्यों के वॉलंटियर्स भाग ले रहे हैं। कार्यशाला में जंगल को बढ़ाने और वन्य जीवों को संरक्षण देने का संदेश दिया गया है।

10 राज्यों के वॉलंटियर्स रहें मौजूद

कार्यशाला की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश वन ,पर्यावरण, वन्यजीव एवं जलवायु परिवर्तन के राज्यमंत्री डॉ. अरूण कुमार सक्सेना ने की। इस अवसर सुनील चौधरी, ललित कुमार वर्मा, पी.पी. सिंह, ज्ञानेन्द्र सिंह, मनीष सिंह, डॉ. उत्कर्ष शुक्ला समेत विभिन्न प्रभागों से आए प्रभागीय वनाधिकारी समेत 10 राज्यों के बाघ मित्र एवं मीडिया बन्धु शामिल रहें।

बाघ मित्रों’ पर बनी फिल्म का किया गया प्रदर्शन

कार्यशाला की शुरुआत अध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि डॉ. अरूण कुमार सक्सेना द्वारा मंच पर उपस्थित समस्त अधिकारियों को पुष्पगुच्छ भेंट और कार्यशाला के विषय में परिचय देते हुए किया गया। साथ ही पीलीभीत टाइगर रिजर्व के ‘बाघ मित्रों’ पर बनी एक फिल्म का प्रोजेक्टर पर प्रदर्शन किया गया।

मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए सहअस्तित्व है जरूरी- वनमंत्री

कार्यशाला मे वन राज्यमंत्री डॉ.अरुण कुमार ने मानव-वन्यजीव संघर्ष के दौरान एवं नेपाल से आए जंगली हाथियों द्वारा किसानों की फसल क्षति के लिए मुआवजे का प्रमाण पत्र किसानों को वितरित किया। साथ ही उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में रहकर वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा एवं संरक्षण करने के लिए वनकर्मियों के कार्यों की सराहना की। कार्यशाला मे कई राज्यों के टाइगर रिजर्व के प्रतिनिधियों ने भी अपने-अपने अनुभवों को साझा किया।

कौन है ‘बाघ मित्र’ और क्या है उनका काम

पीलीभीत में ‘बाघ मित्र’ स्थानीय ग्रामीण होते हैं, जो वन विभाग के साथ मिलकर मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने और बाघों के संरक्षण में मदद करते हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीलीभीत ‘बाघ मित्रों’ की सराहना भी की थी।

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The Forest Times
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