हिमालय की बर्फीली ऊंचाइयों में रहने वाला दुर्लभ और शर्मीला हिमालयी कस्तूरी मृग धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर हैं। अपनी कस्तूरी ग्रंथि से निकलने वाली बहुमूल्य सुगंध के कारण यह वर्षों से अवैध शिकारियों का शिकार बनता रहा है। हाल ही में, सूचना का अधिकार (RTI) के माध्यम से मिले खुलासों ने इस बात की पुष्टि की है कि इन मृगों के संरक्षण और प्रजनन कार्यक्रम के लिए दशकों पहले शुरू किए गए सरकारी प्रयास पूरी तरह विफल रहे हैं।
अपनी ग्रंथि से निकलने वाली दुर्लभ सुगंध के लिए प्रसिद्ध हैं हिमालयी कस्तूरी मृग
अल्पाइन कस्तूरी मृग (मॉसचस क्राइसोगैस्टर) जो मध्य से पूर्वी हिमालय में पाए जाते है, और दूसरी हिमालयी कस्तूरी मृग (मॉसचस ल्यूकोगैस्टर) जो पश्चिमी हिमालय में पाए जाते हैं। नर कस्तूरी मृग की कस्तूरी ग्रंथि से एक प्रकार का तेज़ सुगंध निकलता हैं जिसके लिए वे पूरी दूनिया में प्रसिद्ध होते हैं। इसी दुर्लभ सुगंध के लिए इनका बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता है। इसका इस्तेमाल इत्र और पारंपरिक दवा बनाने में किया जाता हैं, जो इसे सोने से भी ज़्यादा कीमती बना देती है।

आखिर किन कारणों से हो रहे कस्तूरी मृग विलुप्त
हिमालयी कस्तूरी मृग विलुप्त के विलुप्त होने के पीछे कई कारण हैं-:
● अवैध शिकार: कस्तूरी मृग अपनी कस्तूरी ग्रंथि से निकलने वाली बहुमूल्य सुगंध के कारण वर्षों से अवैध शिकारियों का शिकार बनता रहा हैं। अक्सर शिकारी कस्तूरी सुगंध प्राप्त करने के लिए मृग को मार देते हैं, जबकि कस्तूरी सुगंध जीवित मृग से भी निकाली जा सकती है, जिसकी वजह से इनकी संख्या मे लगातार कमी हो रही हैं।
● जलवायु परिवर्तन और आवास का नुकसान: हिमालय में तेज़ी से हो रहे जलवायु परिवर्तन से भी इनकी संख्या प्रभावित हो रही है। साथ ही मानव गतिविधियों की वजह से इनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं, जिस कारण उनके रहने के स्थान मे कमी हो रही हैं।
● विफल प्रजनन कार्यक्रम: हिमालयी कस्तूरी मृग के सभी प्रजनन कार्यक्रम विफल रहें हैं। चिड़ियाघर प्राधिकरण (CZA) की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार,भारत के किसी भी मान्यता प्राप्त चिड़ियाघरों कस्तूरी मृग का कोई प्रजनन कार्यक्रम शुरू ही नहीं हुआ है। यहां तक की कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि चिड़ियाघरों में हिमालयी कस्तूरी मृग की प्रजातियों के पहचान में भी भ्रम रहा है, जिसके परिणामस्वरूप प्रजनन कार्यक्रम का फल शून्य रहा हैं।
●बीमारी व दुर्घटना: 1982 में उत्तराखंड के चोपता में पहला कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र खोला गया था। शुरुआत में वहां 5 मृग लाए गए और संख्या बढ़कर 28 तक पहुंच गई थी लेकिन बीमारी, सांप के काटने और निमोनिया जैसी समस्याओं के कारण मृग लगातार मरते रहे और अंततः यह प्रयास भी विफल हो गया। और दूसरी तरफ कुछ कस्तूरी मृग अन्य मांसाहारी वन्यजीवों के आहार का शिकार हो गए जो उनकी संख्या मे कमी का एक और कारण बन गई।

कस्तूरी मृग का संरक्षण है जरूरी
हिमालयी कस्तूरी मृग का अस्तित्व दांव पर है, और यह न केवल एक प्रजाति का नुकसान है, बल्कि हिमालय के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी एक गंभीर चेतावनी है। भारत में कस्तूरी मृग के संरक्षण कार्यक्रम पूरी तरह नाकाम साबित हुए है। गलत रणनीतियों और पहचान ने इसे और भी जटिल बना दिया है। यही कारण है कि आज भी इस प्रजाति की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। यदि सरकार और संरक्षण एजेंसियां तुरंत और प्रभावी ढंग से काम नहीं करती हैं, तो यह सुंदर और मायावी जीव हमेशा के लिए हमारे बीच से गायब हो जाएगा।
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