भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 (जोकि दिसंबर 2024 में जारी हुई थी) और हाल ही सितंबर 2025 में जारी एक पर्यावरण लेखा रिपोर्ट के आधार पर वन सांख्यिकी विभाग ने जानकारी दी है कि भारत के समग्र वन क्षेत्र में एक दशक मे मात्र 2.5% की मामूली वृद्धि हुई है। यह वृद्धि मुख्यतः वृक्षारोपण और कृषि वानिकी के कारण हुई हैं और यह प्राकृतिक, जैव विविधता वाले वनों में कमी और कुछ क्षेत्रों में बढ़ते वनों की कटाई को छुपाती है।
आंकड़ों से पता चला है कि केरल के वन क्षेत्र में सबसे अधिक वृद्धि हुई है जो कि 4,137 वर्ग किमी दर्ज की गई है फिर कर्नाटक जहा कल 3,122 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है और तमिलनाडु मे 2,606 वर्ग किमी की वृद्धि हुई हैं।
वन सांख्यिकी विभाग के कुल आंकड़े
●कुल वन क्षेत्र मे मामूली वृद्धि: सांख्यिकी विभाग के अनुसार, भारत का समग्र वन क्षेत्र एक दशक (2010-11 से 2021-22) में 2.5% बढा है। 2010-11 मे जो कुल वन क्षेत्र 6,97,898 वर्ग किमी था वो 2021-22 मे बढ़कर 7,15,342 वर्ग किमी हो गया हैं। यानि 10 सालों मे भारत का वन क्षेत्र 17,444 वर्ग किमी बढ़ा हैं।
●आईएसएफआर 2023 के निष्कर्ष: भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आईएसएफआर) 2023, 2021 की तुलना में कुल वन और वृक्ष क्षेत्र में 1,445 वर्ग किमी की वृद्धि दर्शाती है।
●भारत मे कुल भौगोलिक क्षेत्र मे वन: भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 25.17% पर वन क्षेत्र हैं।
●कार्बन सिंक: भारत के वनों में कार्बन भंडार भी बढ़ा है, जिससे देश पेरिस समझौते के तहत अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं के और करीब पहुँच गया है।

विभिन्न प्रकार के वनों में मिश्रित रुझान
●अत्यंत सघन वनों (वीडीएफ) मे वृद्धि: आकड़ों के अनुसार भारत के घने वनों में 22.7% की वृद्धि हुई हैं। 2010-11 में जहा घने वन 83,502 वर्ग किमी मे फैले थे, वे 2021-22 में बढकर 102,502 वर्ग किमी हो गए। यानि एक दशक मे घने वनों मे लगभग 19,000 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। यह वन संरक्षण और पुनर्जनन के सफल प्रयासों का संकेत है। केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में इस श्रेणी में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई।
●मध्यम सघन वनों (MDF) में गिरावट: इसी क्रम मे मध्यम सघन वनों (40-70% घनत्व) में 11,000 वर्ग किमी से अधिक की गिरावट देखी गई। यह क्षरण की चुनौतियों का संकेत देता है।
●”खुले वनों” और “वन के बाहर वृक्षों” (ToF) में वृद्धि: इस वृद्धि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा “खुले वनों” (10-40% घनत्व) और वन भूमि के बाहर वृक्षों से आता है, जो कृषि वानिकी और वृक्षारोपण को सरकारी प्रोत्साहन से प्रेरित है। आलोचकों का तर्क है कि यह प्राकृतिक वन पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान को छुपाता है।
●मैंग्रोव आवरण में कमी: भारत के मैंग्रोव आवरण में 2021 से मामूली कमी दर्ज की गई है।

प्राकृतिक वन हानि के खतरनाक संकेत
●वनों की कटाई जारी है: ग्लोबल फ़ॉरेस्ट वॉच के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2024 में 18,200 हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हुए हैं। 2001 और 2024 के बीच, कुल वृक्ष आवरण का नुकसान 2.31 मिलियन हेक्टेयर हुआ है।
●क्षेत्रीय वनों की कटाई के हॉटस्पॉट: झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बुनियादी ढाँचे, औद्योगिक गलियारों और खनन के लिए वन भूमि के उपयोग की उच्च दर देखी गई है। पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों सहित पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में भी वन आवरण घट रहा है।
● बढ़ता अतिक्रमण: 2024 की एक सरकारी रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि 25 राज्यों में 13,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन भूमि पर अतिक्रमण है।
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